डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः....*प्रथम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-7


रावन-राज बढ़ा अघ भारी।


सुर-नर-मुनि सभ भए दुखारी।।


    मातु-पिता कै बड़ अपमाना।


    साधु-संत-सज्जन नहिं माना।।


पर दारा, पर धन जन लोभी।


कुकरम करहिं न मन रह छोभी।।


    राच्छस असुर-राज रह बाढ़ा।


    अधरम-कुकरम-प्रेम प्रगाढ़ा।।


चहुँ दिसि बिलखहिं जे जन सज्जन।


हरषहिं,बेलसहिं जे रह दुर्जन ।।


     धरम-ह्रास अरु सज्जन-नासा।


      अघ बड़ भारहिं मही उदासा।।


परम बिकल अकुलाइ असोका।


गऊ रूप महि गइ सुर-लोका।।


     नैन अश्रु भरि ब्यथा बतावा।


     पर नहिं कछुक सहयता पावा।।


तब सभ मिलि गे ब्रह्मा पासा।


हिय महँ धरे उछाह-उलासा।।


     ब्रह्मा गए समुझि अभिप्राया।


     पर नहिं सके बताइ उपाया।।


कह बिरंचि नहिं कछु बस मोरे।


कटिहइँ कष्ट सकल प्रभु तोरे।।


दोहा-सुनहु धरनि धीरजु धरउ,धरहु मनहिं महँ आस।


        प्रभु जानहिं बिपदा सकल,कटिहइँ रखु बिस्वास।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372 क्रमशः.....


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