डॉ0हरि नाथ मिश्र

*सुरभित आसव मधुरालय का*16


सब देवालय,सब ग्रंथालय,


जितने शिक्षा-सदन यहाँ।


सबके संचित ज्ञान-कोष की-


होती यहीं लिखाई है।।


      ज्ञान संग विज्ञान की शिक्षा,


      वैदिक शास्त्र,पुराणों की।


      मानव-मूल्यों की भी शिक्षा-


      इससे जग ने पाई है।।


औषधीय पद्धतियों का भी,


प्रतिपादक मधुरालय है।


रखे स्वस्थ यह जन-जन मन को-


नहीं वर्ण-टकराई है।।


     समतामूलक संस्कृति की यह,


     सदा सूचना देता है।


     यह मधुरालय इक प्रहरी इव-


     करता रात-जगाई है।।


विविध रूप-रँग-कला-केंद्र यह,


रखे बाँध इक धागे में।


शत्रु-भाव को कर अमान्य यह-


उपदेशक-समताई है।।


      अति विशिष्ट मधुरालय-आसव,


       विश्व-पटल का बन आसव।


       सातो सिंधु पार जा करता-


       अपनी पैठ-बिठाई है।।


भारतीय आदर्शों-मूल्यों,


की विदेश में शान बढ़ी।


श्वेत-श्याम की घृणित धारणा-


की जग करे खिंचाई है।।


      आसव है इक निर्मल-पावन,


      सोच-समझ मानव-मन की।


      मधुर सोच,रसभरी समझ ही-


      मन-रसाल-अमराई है।।


पावन आसव-सोच-पवित्रता,


मुदित मना करती नर्तन।


नृत्य-कला की बिबिध भंगिमा-


देख धरा लहराई है।।


आसव-असर-प्रभाव-पवित्रता,


पा पवित्र यह धरती हो।


मनसा-वाचा और कर्मणा-


जन-जन शुचिता छाई है।।


     पूरब-पश्चिम,उत्तर-दक्षिण,


      मधुरालय की चर्चा है।


     गौरव-गरिमा मातृ-भूमि यह-


     जग-बगिया महकाई है।।


स्नेह-भाव,सम्मान-सुहृद गृह,


मधुरालय रुचिरालय है।


गरल कंठ जा अमृत होती-


शिवशंकर-चतुराई है।।


      सदा रहा मन कंपित अपना,


      कैसा आसव-स्वाद रहे?


      पर आसव ने हरी व्यग्रता-


      नीति अमल अपनाई है।।


नव प्रभात ले,नई चेतना,


सँग नव ज्योति सदा फैले।


प्रगतिशील नित नूतन चिंतन-


की आसव विमलाई है।।


      सदा भारती ज्ञान की देवी,


      से आसव की शान बढ़े।


      मधुरालय की दिव्य छटा लखि-


      माँ वाणी मुस्काई है।।


एक घूँट बस दे दे साक़ी-


आसव की सुधि आई है।।


                  © डॉ0हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


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