डॉ0हरि नाथ मिश्र

*गीत*(पावस)


होता बड़ा है दिलकश,बरसात का मौसम,


पायल की छमा-छम,लगे बरसात झमा-झम।।


 


माटी की सोंधी खुशबू, की बात क्या करें,


खुशबू के घर में जैसे,छा जाता है मातम।।


 


प्यासी धरा प्रफुल्लित, मर जातीं गर्मियाँ,


निरख प्रवाह जल का,किसान भूले ग़म।।


 


चारो तरफ़ हरीतिमा,छा जाती खुशनुमा,


धानी चुनर में धरती सज जाती चमाचम।।


 


संगीत-गीत पावस,लेता है दिल चुरा,


लगता है बजने मीठा,ये झींगुंरी सरगम।।


 


झूले से सज हैं जातीं,वृक्षों की टहनियाँ,


सब झूलते हैं झूला,गा कजरी मनोरम।।


 


मोरों के भाव नर्तन,लख मोहिनी अदा,


बादल पिघल के करते,सूखी धरा को नम।।


 


बैठी हुई निज कक्ष में,मायूस नायिका,


प्रियतम को दे संदेश,मेघों से हो विनम्र।।


 


बरसात पे ही होती,आश्रित ये जिंदगी,


पावस ही करती दाना,-पानी का उपक्रम।।


                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...