डॉ0हरि नाथ मिश्र

* सुरभित आसव मधुरालय का*5अ


शिव का वाहन नंदी है तो,


सिंह सवारी गिरिजा की।


सिद्धिविनायक का मूषक तो-


कार्तिक-मोर-निभाई है।।


       ये सब दुश्मन हैं आपस में,


       वाहन किंतु कुटुंबी एक।


       नंदी-सिंह का मेल अनूठा-


       उरग-मयूर-मिताई है।।


ऐसा कुल है मधुरालय भी,


आसव जिसका है हृदयी।


इस आसव का सेवन करते-


मिटती भी रिपुताई है।।


       नेत्र खुले चखते ही तिसरा,


       जो है अंतरचक्षु सुनो।


       समता-ममता-नेह-दीप्ति को-


       इसने ही चमकाई है।।


शिव-आसव मधुरालय-आसव,


सकल जगत हितकारी है।


राग-द्वेष-विष कंठ जाय तो-


हृदय अमिय अधिकाई है।।


      शिव-प्रभाव कल्याण-नियंता,


      शिव-प्रभाव सा यह आसव।


      सज्जन-दुर्जन आकर बैठें-


      करता यही मिलाई है।।


हँसी-खुशी सब मिलकर चखते,


आसव-द्रव अति रुचिकर को।


शत्रु-मित्र शिव-कुल के जैसा-


मूषक-मोर-रहाई है।।


         © डॉ0हरि नाथ मिश्र


           9919446372


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