*गीत*(विश्वासों की होरी)
नहीं यहाँ कुछ बचा हुआ है,
सब कुछ जैसे जला हुआ है।
आपस में अब मेल न दिखता,
खंडित लगे प्रेम की डोरी।
बुझी नहीं अब तक दुनिया में-
जलते विश्वासों की होरी।।
अपनी सोच सनातन गहरी,
इसकी नींव सुदृढ़ है ठहरी।
पर सब कुछ अब लगता बदला,
बनी सभ्यता रिश्वतखोरी।
बुझी नहीं अब तक दुनिया में-
जलते विश्वासों की होरी।।
अपना और पराया चिंतन,
नहीं रहा भारत का दर्शन।
विश्व एक परिवार हमारा,
हुई भाव ऐसे की चोरी।
बुझी नहीं अब तक दुनिया में-
जलते विश्वासों की होरी।।
विश्व-शांति का लक्ष्य हमारा,
सदा रहा है अतिशय प्यारा।
स्नेह-रिक्त अब हुए हैं लगते,
अपने स्वस्थ किशोर-किशोरी।
बुझी नहीं अब तक दुनिया में-
जलते विश्वासों की होरी।।
जब संकट के बादल छाते,
उससे मुक्ति सभी जन पाते।
मूल मंत्र बस मात्र एकता,
नहीं खुले अब दान- तिजोरी।
बुझी नहीं अब तक दुनिया में-
जलते विश्वासों की होरी।।
भारत का परचम लहराता,
सकल विश्व की होश उड़ाता।
पर दुर्भाग्य प्रबल अब घेरी,
मची वित्त की छोरा-छोरी।
बुझी नहीं अब तक दुनिया में-
जलते विश्वासों की होरी।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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