डॉ0हरि नाथ मिश्र

*दोहा गीतिका 


सच्चा प्रेमी तो सदा,करता प्रेम अभीत।


उखड़े-उखड़े आज-कल,क्यों मेरे मनमीत??


 


यह तन तो बिल्कुल नहीं,प्रीति-भाव-आधार।


प्रेमी-छवि हिय में बसे,देह-गेह विपरीत ।।


 


कारण हमें बताइए,हे प्रियवर,हे प्राण।


प्रेम-भाव है देव सम,शुचि हिय,परम पुनीत।।


 


था वियोग कल अब मिलन,यह तो भौतिक बात।


भौतिकता से दूर ही, बजे प्रेम - संगीत ।।


 


प्रभुता-लघुता से रहित,प्रेम-भाव-अनुभूति।


जीत इसी की हार है,हार निहित ही जीत।।


 


रूठे प्रेमी को अभी,कर लें सभी प्रसन्न।


गा कर हर्षित हृदय से,मधुर-सुरीला गीत।।


 


रूठो मत हे मीत तू,समझ प्रीति-संकेत।


अब में तब में ही कहीं,रजनी जाय न बीत।।


                  ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                      9919446372


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