*दोहा गीतिका
सच्चा प्रेमी तो सदा,करता प्रेम अभीत।
उखड़े-उखड़े आज-कल,क्यों मेरे मनमीत??
यह तन तो बिल्कुल नहीं,प्रीति-भाव-आधार।
प्रेमी-छवि हिय में बसे,देह-गेह विपरीत ।।
कारण हमें बताइए,हे प्रियवर,हे प्राण।
प्रेम-भाव है देव सम,शुचि हिय,परम पुनीत।।
था वियोग कल अब मिलन,यह तो भौतिक बात।
भौतिकता से दूर ही, बजे प्रेम - संगीत ।।
प्रभुता-लघुता से रहित,प्रेम-भाव-अनुभूति।
जीत इसी की हार है,हार निहित ही जीत।।
रूठे प्रेमी को अभी,कर लें सभी प्रसन्न।
गा कर हर्षित हृदय से,मधुर-सुरीला गीत।।
रूठो मत हे मीत तू,समझ प्रीति-संकेत।
अब में तब में ही कहीं,रजनी जाय न बीत।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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