डॉ०निधि,अकबरपुर अम्बेडकरनगर

## पर्यावरण पर दोहे##* 


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तरुवर खूब लगाइये,जो जीवन प्रमाण । 


शुचि निसदिन प्रकृति रखे,देता सबको प्राण।। 


 


नदिया कानन गिरि सभी,हैं प्रकृति उपहार।


मौसम हैं इनसे सभी ,नित कर इनको प्यार।। 


 


समस्त वाहनों की ध्वनि, भी करती प्रदूषण। 


सम्भव हो तो मत करो,बचा लो पर्यावरण।। 


 


जल को सब जीवन कहै,जल को रखो शुद्ध। 


शारीरिक दुख दूर करे,लड़ता रोग विरुद्ध। 


 


साँस वायु से है मिली,देती जीवन दान।


मत कर इसको मलिन तू,मेरा कहना मान।। 


 


आहत कर पर्यावरण,मनुज करे अभिमान। 


एक दानव समझा गया, पावन इसका स्थान।। 


 


संक्रमण के काल में, जीवन नहि आसान। 


अनुशासित बन मनुज ने,निर्मल किया जहान। 


 


नदिया निर्मल हो बहे,स्वच्छ बहे बयार। 


आसमान को साफ देख, पंछी उड़त पंख पसार । ।


 


पावन वृक्ष,रवि ये धरा,जल,वायु अरु हिमकर।


पर्यावरण का रूप यह, स्वमेव ही ईश्वर ।।


 


*स्वरचित- डॉ०निधि,* 


*अकबरपुर अम्बेडकरनगर।*


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