:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*नहिं दुर्गम अति सुगम मनोरम*


 


नहिं दुर्गम अति सुगम पंथ हो।


अतिशय सरल महान तुम, सदा सहज अनुराग।।


 


विद्यालय गुरुद्वारा तुम हो।


ज्ञानवती विद्यावती, अति विनम्र गुरु मंत्र।।


 


महा शान्त विश्राम बनी आ।


अतिशय स्थिर भावमय, अथकित अकथ अपार।।


 


दीनबंधु करुणाश्रय तुम हो।


रचती सुखद समाज माँ, बनकर दीनानाथ।।


 


भक्तजनों के लिये तत्परा।


द्रवीभूत होती सदा, सुनकर हृदय पुकार।।


 


ब्राह्मणी माँ विद्या वर हो।


आदि शक्तिमय नित्य अज, वरद शारदा सत्य।।


 


महा नारि दिव्या अति भव्या।


परम शक्ति सम्पन्न नित, सुमुखी लोकातीत।।


 


सकल जगत की तुम शोभा हो।


अतिशय सुन्दर सोच तुम, अति मनमोहक काम।।


 


बनी हुई माँ प्रेम दीवानी।


सबके प्रति अनुरागमय,प्रेम शक्ति आधार।।


 


नित्य करूँगा तेरा वन्दन।


पूजनीय माँ शारदा ,करें नित्य कल्याण।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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