*उपयोगिता का सिद्धान्त*
जिसका जितना है उपयोग, उसका उतना ही महत्व है.,
जो जितना होता बेकार, उतना ही वह रद्दी कागज.,
कोई नहीं डालता घास, कुचला जाता पैर के नीचे.,
होता नहीं कभी सत्कार, रद्द-टोकरी ही उसका घर.,
बन जाता कूड़े का ढेर, जो उपयोगी नहीं जगत में.,
मेहनत से जो करता काम, और कुशलता अर्जित करता.,
उसका जग में है सम्मान,मिलती जगह प्रतिष्ठित उसको.,
गुण ग्राहक सारा संसार, गुण ही पूजा का मंदिर है.,
गुण में रहती शक्ति अपार, चुंबक बनकर खींचत सबको.,
गुण का जीवन में उपयोग, यही बनाता काम सहज सब.,
कठिन क्रिया का यही निदान, कुशल बनो गुणगान कराओ .,
गुण का जितना हो उपयोग,मिलती ख्याति उसे उतनी ही.,
विकसित कर वैयक्तिक सोच, बनो विशेषीकृत शिव मानव.,
औद्योगिक समाज की माँग, इसे विशेषीकरण चाहिये.,
सामूहिक चेतन की बात, यहाँ सुनी जाती कदापि नहिं.,
चेतना व्यक्तिगत की भरमार, औद्योगिक संस्कृति का लक्षण.,
यहाँ समाज दीखता गौड़, आगे-आगे व्यक्ति डोलता.,
यहाँ व्यवस्था है बेजोड़, हर मानव है एक इकाई.,
सब उपयोगी सबके काम, यहाँ विभाजित स्पष्टरूप से.,
अपना-अपना करता काम, रोज एक ही काम सुनिश्चित.,
करते-करते काम विशेष, विशेषज्ञ बन जाता मानव.,
विशेषज्ञता का उपयोग,औद्योगिक समाज में होता.,
व्यक्ति यहाँ है ब्रह्म समान, उपयोगिता सिद्धि के कारण.,
सिद्ध करो उपयोगी मंत्र, शक्ति प्रतिष्ठा सुविधा भोगो.,
यह भौतिक संसारी रीति, उपयोगी बन पाओ सबकुछ।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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