*विषय।।कॅरोना संकट।।मजदूर व्यथा।।*
*शीर्षक।।।।चाहिये कोई उनको मरहम लगाने वाला।।*
क्या सोच कर वह हज़ारों मील
नंगे पांव चला होगा।
कितना दर्द उसके सीने के
भीतर भरा होगा।।
सवेंदना शून्य रास्तों पर कैसे
बच्चों ने होगा कुछ खाया।
जाने कब तक यह जख्म उसके
सीने में हरा होगा।।
प्रवासी से आज फिर से वह
स्वदेशी हो गया है।
लौट कर वापिस अपनी मिट्टी
फिर प्रवेशी हो गया है।।
कुछ जड़े कहीं तो कुछ कहीं
अब गई हैं बिखर सी।
अपनो के बीच भी लगता जैसे
परदेसी ही हो गया है।।
पाँव चल रहा था और पांव
जल रहा था।
अरमान टूट रहे थे और परिवार
कैसे पल रहा था।।
फूट रहे थे सब सपने और बिखर
रहा था संसार उसका।
मजदूर अपनी आँखों में आज
खुद ही खल रहा था।।
जरूरत है उसको हमारे और
अपनों के याद की।
फिर से जोड़ने तिनका तिनका
उन सपनों के साथ की।।
सरकार को भी आगे चल कर
उसका हाथ थामना होगा।
लगाने को मरहम उसके रिसते
जख्मों पर प्यार के हाथ की।।
*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस* "
*बरेली।*
मो।। 9897071046
8218685464
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