एस के कपूर "श्री हंस* " *बरेली।*

*विषय।।।।।।।शत्रु।।।।।।।।।।।*


*शीर्षक। हम ही अपने मित्र हम*


*ही हैं अपने शत्रु भी।*


*विधा।। मुक्तक माला ।।।।।*


 


हम ही हैं अपने शत्रु और


हम ही मित्र भी।


कभी लिये मधुर वाणी और


अहंकार का चित्र भी।।


हमारे भीतर ही स्तिथ गुण


मानव और दानंव के।


यह मनुष्य प्राणी जीव है


बहुत ही विचित्र भी।।


 


जिस डाल पर बैठता उसी


को काट डालता है।


मधुर सम्बन्धो को भी स्वार्थ


वश बांट डालता है।।


जीवन भर की मित्रता को


पल में करता ध्वस्त ये।


अपनेपन की चाशनी को बन


शत्रु चाट डालता है।।


 


हमारा घृणा भाव ही तो है


परम शत्रु हमारा।


मन को करता कलुषित मोड़


देता ये मितरु धारा।।


क्रोध वह शत्रु है जो करता


हमारा ही सर्वनाश।


कर बुद्धि का नाश हटा देता


अपना ही मित्र सहारा।।


 


बने हमयूँ भूल सेभी हमसे कोई


घायल न होना चाहिये।


हमारी नज़र में कोई छोटा नीचे


पायल न होना चाहिये।।


वसुधैव कुटुम्बकम का सिद्धांत


हो मन मस्तिष्क में।


हमारेआचरण का मित्र नहीं शत्रु


भी कायल होना चाहिये।।


 


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस* "


*बरेली।*


मोब 9897071046


                  8218685464


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