*विषय।।।।।रोटी।।।।।।।।।।।।।*
*शीर्षक।।।घर से बेघर हुआ था*
*मजदूर दो जून की रोटी को।।।।*
आज अपने देश में ही हम
पराये प्रवासी हो गये हैं।
समझ नहीं आता अब हम
कहाँ के निवासी हो गये हैं।।
भूख,गरीबी,आज बन गये
हैं अभिशाप जिन्दगी के।
खुद के लिए अब मानो हम
जैसे आभासी हो गये हैं।।
अपनी बनाई सड़क पर ही
हम पैदल चल रहे हैं।
पेट में नहीं *रोटी* और पाँव
नंगे भी साथ जल रहे हैं।।
जिन्दगी नरक सी बन गई
अब अपनी ही नज़र में।
रात दिन बच्चों के मन और
शरीर भूख से गल रहे हैं।।
भारत के राष्ट्रनिर्माता बन कर
समझते थे कि हम मगरूर हैं।
आज हम को पता चला कि
हम सब कितने मजबूर हैं।।
अब न तो शहर के ही रहे और
गाँव भी तो बहुत दूर है अभी।
असल में जान पाये कि हम
कुछ नहीं बस एक मजदूर हैं।।
इस दुर्दशा में आयो हम सब
मिलकर इनका साथ निभायें।
इनकी दो जून की *रोटी* में
भी अपना योगदान दिखायें।।
अकेले सरकार पर ही छोड़ना
सबकुछ जिम्मेदारी से भागना।
आईये मिलकर फिर से इनको
पद राष्ट्र निर्माता का दिलवायें।।
*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।*
मोब 9897071046
8218685464
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