*मत हारो जिन्दगी से तुम कभी।।।*
*(अवसाद/तनाव/चिंता में प्राण*
*स्वयं लेने को रोकती मेरी एक*
*रचना/प्रत्येक युवा को समर्पित)*
मत हारो जिन्दगी से कि ये
प्रभु का वरदान होती है।
पूरे करने को कुछ सपने
वह अरमान होती है।।
मत छोड़ना मैदान तुम कभी
बीच मझधार में।
हार गये गर तुम मन से तो
फिर ये गुमनाम होती है।।
माना गम बहुत हैं इस जमाने
में पर तुम बिखरो नहीं।
गिरो उठो संभलो चलो और
फिर भी तुम निखरों यहीं।।
पूरे करने को देखो सपने पर
जुड़े भी रहो हकीकत से।
पर भाग कर तुम इस दौड़
से मत खिसको कहीं।।
हर रंजोगम जिन्दगी से कभी
ऊपर नहीं है।
हार जायो तुम तो भी जिन्दगी
जीना दूभर नहीं है।।
मत रुखसत हो दुनिया से कभी
बेनाम निराश होकर।
जान लो संसार में कभी भी
कोई सुपर नहीं है।।
तनाव में भी खुद जान ले लेना
कहलाती बस नादानी है।
सुख दुःख चलते साथ साथ बस
यही जीवन की रवानी है।।
यही जिंदगी की मांगऔर हमारी
है जिम्मेदारी भी।
गर सितारें हों गर्दिश में तो तुम
खुद लिखो नई कहानी है।।
चल कर धारा के विपरीत भी
तुम सच में ख्वाब बनो।
जिसकी रौनक खुद छा जाये
तुम वह शबाब बनो।।
असंभव शब्द में खुद ही छिपा है
सम्भव शब्द भी ।
ठान लो बस मन में कि तुम
एक हीरा नायाब बनो ।।
*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।*
मोब।। 9897071046
8218685464
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