वो पिता कहलाता है ।
पर्दे पर नजर नही आता ,
पर उसका सहयोग हरपल ,
हर क्षण जीवन भर पुत्र
परोक्ष पाता है ,
तभी आगे बढने की,
अपनी ख्वाहिश को
साकार कर पाता है ।
खिलौनो की ,स्वप्न भरी दुनिया से ,
यथार्थ की धरती पर,
महलों के खूबसूरत ख्वाब सजा पाता है ।
परियों के किस्से सुन-सुनकर,
हसरते मन मे लिए
यौवन की दहली पर
परी सा साथी ढूँढ़ पाता है ।
भले ही निवाले
हाथों से ना खिलाएं हो ,
पर हर निवाले मे ,
उसकी मेहनत की
खुशबू उसमे पाता है ।
संकोची स्वभाव,
सिर पर हाथ ना फिरा पाया हो ,
पर उसके हर बोझ को
अपने कांधे पर वो उठा पाता है ।
ठोकरों से बचाने की खातिर
नसीहते दे देकर ,कठोर ,बेदर्दी,
और ना जाने क्या क्या
उपनाम वो पाता है ।
अपनो के
प्यार की तलाश मे तरसता,
जीवन भर खुद रूखी सूखी खाकर
भी सो पाता है ।
कठोर से चेहरे के पीछे ,
नाजुक सा दिल लिए,जमाने की मार से
बचाने की कोशिश मे ,
खुद मात ही पाता है ।
फिर भी सारे गमो को सीने मे छुपाए ,
चुपचाप इन्दु
गहराती भींगी रातो मे भींग भींग पाता है ।
वो पिता कहलाता है ,,,वो पिता कहलाता है।
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