काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार

डॉ प्रताप मोहन "भारतीय" 


जन्म -15 जून1962 को कटनी (म.प्र.) 


पिता का नाम - श्री गोविन्दराम मोहन


माता का नाम - श्रीमती ईश्वरी देवी


शिक्षा - बी. एस. सी., आर. एम. पी.,एन. डी., बी. ई. एम. एस. , एम. ए.,एल. एल. बी.,सी. एच. आर.,सी. ए. एफ. ई.,एम. पी.ए.


सम्प्रति - दवा व्यवसायी


संपर्क - 308,चिनार ए - 2,ओमेक्स पार्क वुड,चक्का रोड , बद्दी - 173205(हि. प्र.)


चलित दूरभाष-9736701313,9318628899 ,


अणू डाक - DRPRATAPMOHAN@GMAIL.COM


लेखन की विधाए - क्षणिका ,व्यंग्य लेख , गजल , साहित्यक गतिविधीयाँ - राष्ट्रीय स्तर के पत्र , पत्रिकाओ में रचनाओ का प्रकाशन


प्रकाशित कृतियां - उजाले की ओर (व्यंग संग्रह)


पुरस्कार एंव सम्मान


(1) साहित्य परिषद् उदयपुर राजस्थान द्वारा "काव्य कलपज्ञ" की उपाधि से सम्मानित


(2) के.बी. हिन्दी साहित्य समिति बदांयू ((उ. प्र.) द्वारा "हिन्दी भूषण श्री" 2019 की उपाधि से सम्मानित


(3) नालागढ़ साहित्य कला मंच हि. प्र. द्वारा "सुमेधा श्री 2019" सम्मान प्राप्त ।


 


कविता 1


** पिता ***


बाहर कठोर


अंदर नरम दिल


होता है


सारा दिन अपनी


संतान को


समर्पित होता है


      ***


त्याग कर सारी


अपनी इच्छाऐ


संतान पर


ध्यान देता है 


सच में पिता


महान होता है


       ***


बच्चो की हर


बात बिना बोले


समझ जाते है


बच्चो की खातिर


अपना हर गम


भूल जाते है


      ***


पिता हर


इच्छा पूरी करने वाला


सांता क्लॉज़ है


हर बच्चो को होता


अपने पिता पर नाज़ है


      ***


जिसके पास है पिता


वो सबसे बड़ा अमीर है


क्योंकि पिता ही


हमारी सबसे बड़ी जागीर है


       ***


जिसने कर दी पूरी 


ज़िन्दगी संतान के नाम


ऐसे पिता का करे


हम हमेशा सम्मान


  लेखक -


          डॉ प्रताप मोहन "भारतीय        


 


2


*** सुँदरता ***


शरीर सुन्दर होता है


तो सभी होते है आकर्षित


मन की सुंदरता को


कोई देखता नहीं


 तन की सुंदरता है


अस्थायी 


वक़्त के साथ


ढल जायेगी


जबकि मन की सुंदरता


अंत तक साथ निभायेगी 


यह कोई जरुरी नहीं


कि हर सुंदर तन के पीछे


एक सुंदर मन हो


तन के साथ मन भी


हो सुन्दर तभी


सुंदरता का


वास्तविक आनंद आयेगा


इस दुनिया का नियम है


जो दिखता है


वो बिकता है


सुंदरता दिखती है


तो वह बिकती है


मन की सुंदरता


नही दिखती है


तो उसका ग्राहक भी


नहीं मिलता है


  लेखक -


          डॉ प्रताप मोहन "भारतीय          


 


3


*** अहंकार ***


अहंकार आज तक


किसीका टिक नही पाया है


महाबलि रावण भी


ने इससे हार खाया है


        ***


कभी खुद पर


न करें अहंकार


सभी को समझे


एक प्रकार


       ***


जिसने भी अहंकार से


नजदीकी बनायी है


हमेशा ज़िन्दगी में


ठोकर खायी है


       ***


अहंकार का असर


ऐसा है आता


कि अहंकारी सही


और गलत में


अंतर नहीं कर पाता


        ***


ऐसी दौड़ है


अहंकार


जहाँ जीतने वाला


जाता है हार


  लेखक -


          डॉ प्रताप मोहन "भारतीय          


4


*** प्रकृति और मानव ***


प्रकृति अपनी


चीजो का उपयोग


स्वयं नहीं करती


वह इससे है


मानव का पेट भरती


         ***


मानव है स्वार्थी


करता है प्रकृति से खिलवाड़


तभी तो आते है सूखा और बाढ़


         ***


मानव प्रकृति की


गोंद में फलता फूलता है


इसके बाद भी 


प्रकृति को लूटता है


         ***


प्रकृति और मानव 


का चोली और


दामन का संबंध है


बिना प्रकृति के


मानव का अंत है


        ***


मानव यदि


प्रकृति के नियमो 


का सम्मान करेगा


तभी इस दुनिया में


राज करेगा


    लेखक -


          डॉ प्रताप मोहन "भारतीय          


5


*** बेटी की विदाई ***


जब बेटी की


विदाई का अवसर


आता है


माँ बाप की आँखों में


आँसू और दिल


भर आता है


       ***


बेटी है


पराया धन


इसे छोड़ना


पड़ता है


घर एक दिन


    ***


बेटी की विदाई


की परंपरा


सदियों से 


चली आयी है


राजा हो या रंक


किसी ने बेटी


अपने घर नहीं बिठायी है


       ***


आज बिदाई में


बेटियां नहीं रोती है


क्योंकि वो


अपने जीवन साथी से


पूर्व परिचित होती है


        ***


कैसा है दुनिया का दस्तूर


कि हम


अपने कलेजे के टुकड़े


को दूसरे को


सौप देते है


अपनी बेटी को


परायो को सौप देते है


       ***


एक घर छोड़कर


दुसरा घर


होता है बसाना


हमेशा से ये परम्परा


निभाता आ रहा है जमाना


    लेखक -


          डॉ प्रताप मोहन "भारतीय - बद्दी - 173205 (H P)


  9736701313


 


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