सीमा शुक्ला
पति _राहुल कुमार शुक्ला
पता- मंझवा गद्दोपुर (रायबरेली रोड)
अयोध्या उत्तर प्रदेश
व्यवसाय- अध्यापन
बेसिक शिक्षा विभाग
शिक्षा- परास्नातक-
१ समाजशास्त्र
२ अंग्रेजी साहित्य
BP Ed training
9453998863
1 कविता शारदे वंदना
मां वन्दना
मात सुन लो हृदय से करूं वंदना।
मात जन-जन की सुन लो करुण वेदना।
मां मिटा दो सकल आज दुश्वारियां।
प्रेम की खिल उठें कोटि फुलवारियां।
है मुकद्दर बहुत आज बिगड़ा हुआ।
हर तरफ है चमन आज उजड़ा हुआ।
मां करो आज सबकी सफल साधना।
मात जन-जन की सुन लो करुण वेदना।
मां मिटा दो अंधेरी अमा रात को।
हर तरफ मां करो नेह बर्सात को।
दर्द की धूप से जल रहें हैं वदन,
हर तरफ कंठ में बेबसी का रुदन।
मात हर मन मिटा दो कुटिल वंचना।
मात जन-जन की सुन लो करुण वेदना।
मां धरा पर न हो फिर हरण चीर का।
बाल सिसके न कोई बिना क्षीर का।
मां न ममता के आंचल में आंसू गिरे
टूटकर मां नयन से न सपनें झरें।
मात भक्तों की किंचित सुनो अर्चना।
मात जन-जन की सुन लो करुण वेदना।
सीमा शुक्ला अयोध्या।
कविता 2
आओ फिर से तुम नव विहान।
कलियों में मृदु मकरंद भरो
फूलों में मधुर सुगंध भरो।
उपवन में नव श्रृंगार भरो
वीणा में मृदु झनकार भरो
पिक कंठ सुरीला राग भरो
कुंठित मन में अनुराग भरो
मस्ती में कालिका चूम चूम
अलि गाये फिर से प्रणय गान
आओ फिर से तुम नव विहान।
अधरो पर पुलकित हास भरो
अंतस में फिर उल्लास भरो।
निर्जन पथ में कुछ संग भरो
जीवन में स्वप्निल रंग भरो।
कुछ टूटे मन में आस भरो।
मृत मानवता है श्वास भरो।
तुम नवल रश्मियों से जन जन
को फिर से दो अमरत्व ज्ञान
आओ फिर से तुम नव विहान।
आंचल की सुनी गोद भरो।
दुखियारे मन अमोद भरो।
पाषाण हृदय में भाव भरो।
कुछ असह वेदना घाव भरो।
जगजीवन शुद्ध विचार भरो।
मानव मन नेह अपार भरो।
फिर से वसुधा पर मानव में
निज मर्यादा का रहे ध्यान।
आओ फिर से तुम नव विहान।
झूठे के मन में सत्य भरो।
अलसाये जीवन कृत्य भरो।
कुछ क्रूर हृदय में दया भरो।
आंखों में थोड़ी हया भरो।
निर्धन के घर भंडार भरो।
सबके जीवन में प्यार भरो।
मानवता का फिर करुण रुदन
परवरदिगार सुन ले महान।
आओ फिर से तुम नव विहान।
सीमा शुक्ला अयोध्या।
कविता 3
तुम्हे क्या लिखूं?
तुम्हे अधर की प्यास लिखूं,
या जीवन का उल्लास लिखूं।
तुम्हे ख्वाब या तुम्हे हकीकत,
या मधुरिम एहसास लिखूं।
भावों में कर तुम्हे समाहित,
प्रेम गीत मैं चंद लिखूं।
मन स्वर्णिम स्मृतियों को
छंदों में कर बंद लिखूं।
तुम्हे गीत या ग़ज़ल लिखूं
या तुम्हे पृष्ठ इतिहास लिखूं
तुम्हे ख्वाब या तुम्हे हकीकत,
या मधुरिम एहसास लिखूं।
कृष्ण कन्हैया राधा का या,
मीरा का मैं श्याम लिखूं।
या मन की हर श्रद्धा लिख दूं
या सबरी का राम लिखूं।
तुम्हें वेदना का पतझर या,
तुम्हे खिला मधुमास लिखूं।
तुम्हे ख्वाब या तुम्हे हकीकत,
या मधुरिम एहसास लिखूं।
देवनदी सा पावन मन को,
पग रज को चंदन लिख दूं।
वीणा की झनकार तुम्हारे,
उर का स्पंदन लिख दूं।
तुम्हें विरह के आंसू लिख दूं,
या मुख का परिहास लिखूं
तुम्हें ख्वाब या तुम्हे हकीकत,
या मधुरिम एहसास लिखूं।
सीमा शुक्ला अयोध्या।
कविता 4
जीवन
जीवन है जलधार मुसाफिर
सुख दुख है दो नाव।
सुख में पथ हैं छांव मुसाफिर,
दुख में जलते पांव।
कभी जगे उम्मीद हृदय में
पुलकित मन में आशा है।
कभी घोर मायूसी छाए,
चारो ओर निराशा है।
कभी जंग में जीत मुसाफिर,
कभी हारते दांव।
सुख में पथ हैं छांव मुसाफिर,
दुख में जलते पांव।
कभी हो रही है दामन में
नित्य खुशी की वर्षा हैं
कोई खुशियों की तलाश में
नित्य नित्य ही तरसा है।
कोई सागर पार मुसाफिर
कहीं डूबती नाव ।
सुख में पथ हैं छांव मुसाफिर
दुख में जलते पांव।
कभी पनपता प्रेम नित्य ही,
होती कभी लड़ाई है।
कभी भीड़ है मेले की तो,
कभी अमिट तन्हाई हैं।
कभी गैर दुख हरे मुसाफिर
अपनें देते घाव।
सुख में पथ हैं छांव मुसाफिर
दुख में जलते पांव।
कभी नयन का रोना धोना,
कभी बजी सहनाई है।
कभी वेदना है विछोह की,
कभी मिलन ऋतु आयी है।
कहीं धरा वीरान मुसाफिर
कहीं सजा है गांव।
सुख में पथ हैं छांव मुसाफिर
दुख में जलते पांव।
सीमा शुक्ला अयोध्या।
कविता 5
कहां गए तुम ओ वनमाली।
वही धरा है वही गगन है
मगर बहुत गमगीन चमन है
बुलबुल राग वियोगी गाए
बिना खिले कलियां मुरझाए।
लिपट लता का जीवन जिससे
टूट गई हैं अब वह डाली
कहां गए तुम ओ वनमाली।
तुमसे उपवन का सिंगार था
तुम थे हर मौसम बहार था
फूल खिलें क्या वन महकाएं?
किसके लिए चमन महकाएं?
कोटि यहां ऋतुराज पधारें,
मगर न आयेगी हरियाली
कहां गए तुम ओ वनमाली?
छोड़ दिए हैं पंछी डेरा।
छूटा कलरव गीत सवेरा।
उजड़ा उपवन तुम्हें पुकारे।
फिर जीवन उम्मीद निहारें।
तुम आओ तो फिर वसंत में
फूटे नव किसलय की लाली
कहां गए तुम ओ वनमाली।
सहमा हुआ चमन है सारा।
अपनी किस्मत से है हारा।
कहा गए तुम ओ रखवाले?
तुम बिन इनको कौन संभाले?
शाखों पर मायूस कोकिला
मधुर गान भूली मतवाली।
कहां गए तुम ओ वनमाली।
सीमा शुक्ला अयोध्या।
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