काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार नीलम मुकेश वर्मा

नीलम मुकेश वर्मा


पता:. झुंझुनू राजस्थान।


 


रचना :3


 


है अटल विश्वास हमको,निज कलम की धार पर।


और उससे भी अधिक,माँ शारदे के प्यार पर।।(1)


 


आजकल यूँ तो हमें आदत हुई है जीत की,


शौक से फ़िर भी मनाते,जश्न अपनी हार पर।(2)


 


नाम करने की रही, फ़ितरत सदा इंसान की,


चाहता है वाहवाही,तुच्छ से उपकार पर(3)


 


हसरतों की आड़ में,बदला नज़रिया सोच का,


भूल बैठे फ़र्ज को,नजरें टिकी अधिकार पर(4)


 


ख्वाहिशों को रास कब आता,ख़ज़ालत का क़फ़स,


टूटते अनुबन्ध कितने,बस इसी इक रार पर(5)


 


झाँक कर जो निज गिरेबाँ, में कभी देखें नहीं,


वो लगाते 'नील' पर,इल्ज़ाम किस आधार पर।(6)


 


                     नीलम मुकेश वर्मा


                    झुंझुनूं राजस्थान


 


रचना :/4


 


क्रूर जग की तपन मैं हरू किस लिए।


बन कलश शीत जल का झरूँ किस लिए।।(1)


 


धन पराया समझती है दुनियाँ मुझे,


दम्भ अपनों का फिर मैं भरूँ किस लिए।।(2)


 


जब घरों में सलामत नहीं दामिनी,


फिर क़दम फूँक कर मैं धरूँ किस लिए।(3)


 


दिन-दहाड़े सरेआम आखेट में,


मौत से पूर्व पल- पल मरूँ किस लिए।(4)


 


न्याय के नाम पर गर निराशा मिले,


तेल उम्मीद का फिर भरूँ किस लिए।।(5)


 


सच दफन हो जहाँ, झूठ फूले-फले, 


नाज़ ऐसे वतन पर करूँ किस लिए।(6)


 


स्वान नोचें अगर निर्भया की तरह,


जन्म लेने की जुर्रत करूँ किस लिए।(7)


                      नीलम मुकेश वर्मा


                     झुंझुनू राजस्थान


 


रचना :5


 


दर्प के जब शिखर पर खड़े हो गए।


यूँ लगा ईश से भी......बड़े हो गए।(1)


 


पानी बिजली मिले काम हर हाथ को


वायदे ये पुराने.......सड़े हो गए।(2)


 


बंद सन्दूक में गुप्त धन की कथा,


क़ायदे खोलने के....कड़े हो गए।(3)


 


नीर दुर्लभ हुआ, मय भरी मटकियाँ,


चख, युवा-बाल, सब बेवड़े हो गए।(4)


 


संत बगुला भगत बन करें मौज तब,


धर्म के अनगिनत जब धड़े हो गए।(5)


 


तैश में ताल ठोकी, बजे गाल क्यों,


जब जमाने किसी से लड़े हो गए।(6)


 


ख्याति जिनकी रही सिंध के नाम से,


'नील' घोड़े वो' घटकर घड़े हो गए।(7)


 



 झुंझुनूं राजस्थान


 


 


 


 


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