काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार अवनीश त्रिवेदी "अभय"

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(शिक्षक, कवि,लेखक,समीक्षक)


*संस्थापक/अध्यक्ष*- काव्य कला निखार साहित्य मंच


*जिलाउपाध्यक्ष*- अवधी विकास संस्थान- सीतापुर


*राज्य को- ऑर्डिनेटर(उ.प्र.)*- नवीन कदम साहित्य छत्तीसगढ़


 


पिता- श्री अश्वनी कुमार त्रिवेदी


माता- श्रीमती अनीता देवी


जन्मतिथि- 10/10/1992


पता-


ग्राम- मोहरनिया


पोस्ट- जहाँसापुर


जिला- सीतापुर- उत्तर प्रदेश


पिन- 261141


मोबाइल- 7518768506


ईमेल- avneeshtrivedi72@gmail.com


 


मत्तगयंद सवैया


 


साजन है परदेश सखी मन धीर धरौ नहि जात हमारे।


भूख न प्यास लगै हमकों अब पीर कहो यह कौन उबारे।


फ़ागुन बीति गयो नहि आयउ आँसु बहे बिन रूप निहारे।


रैन न बीतति चैन न आवति आनि मिलो अब प्रान पियारे।


 


अवनीश त्रिवेदी 'अभय'


 


 


मत्तगयंद सवैया


 


प्रीति भरे उर भीतर है पर बोलन से अति वो सकुचाती।


बात करे कुछ ना हमसे पर होंठन से मृदु है मुसकाती।


देह कपास लगे अति शोभित नैनन कोटि मनोज लजाती।


घूँघट के पट झाँपि रही मुख चाल चले सबसे बलखाती।


 


अवनीश त्रिवेदी 'अभय'


 


 


छंद


 


धन्यवाद आपका है मन प्राण से हमारा,


साथ मिला आपका जिंदगी सँवर गयी।


सदा ही रहती साथ जाड़ा गर्मी बरसात,


साथ रहते कई मुश्किलें गुज़र गयी।


अस्त व्यस्त रहते थे पहले तो हमेशा ही,


आप मिली मुझे तो आदतें सुधर गयी।


खाली खाली जिंदगी थी अब गुलज़ार हुई,


आप आयी घर तो खुशियां ठहर गयी।


 


हार-जीत, सुख-दुःख, वैर-प्रीत सहे साथ,


जीवन के संकटों को, साथ ही सहते हैं।


प्राणो से भी प्रिय सदा, प्राण प्रिय हो हमारी,


दूर कभी होते नही, मिल के रहते हैं।


हाँ में ही हाँ मिलाता हूँ, आपकी हर बात में,


स्याह सफ़ेद कहो, तो सफ़ेद कहते हैं।


ज़िन्दगी की दरिया में, किनारें हैं नही पर,


आपके के ही साथ, हमेशा बहते हैं।


 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


 


विश्व की समस्त मातृशक्ति को ह्रदय से कोटि कोटि प्रणाम


 


छंद


 


ममता की मूर्ति आप, जगत की कीर्ति आप,


सरसाती सुधा हमेशा मंगलकारी हो।


अपने पाल्यों पे कभी, कष्ट नही आने देती, 


करती दुआओं से ही, सदा रखवारी हो।


सूखे में सुलाती हमे, गीले में ही सोती सदा,


आँचल की छाँव देती, बड़ी हितकारी हो।


माँ कैसे करे बखान, हम तो बड़े अज्ञान, 


बौने पड़ जाते शब्द, ऐसी वीर नारी हो।


 


अवनीश त्रिवेदी"अभय"


 


 


छंद - घनाक्षरी


 


देखी खूब राह किंतु, कोई न उपाय मिला,


पैदल ही चल दिए, दूर अभी गाँव है।


भूख प्यास सह रहे, कुछ नही कह रहे,


तपती दोपहरी में, मिलती न छाँव है।


किलोमीटर सैकड़ो, दूरी तय कर रहे,


लगातार चलने से, फ़ट रहे पाँव है।


पग लहू रिस रहा, किसी को न दिख रहा,


माननीय कर रहे, राजनीति दाँव है।


 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


सीतापुर- उत्तर प्रदेश


 


मत्तगयंद सवैया


 


केवट पानि कठोत भरो अरु जोरि खड़ो कर पाँव पखारे।


देखि रहो प्रभु रूप अलौकिक नैनन को एक साथ निहारे।


धोवति हैं प्रभु पाँव मनोहर भाग बड़ो भव लोक सुधारे।


हे! रघुनाथ सुनो विनती अब नाव चढ़ो फिर पार उतारे।


 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


 


गीत


 


भोर रवि की हो पहली किरण।


अगर मिल जाए तेरी शरण।


शुलभ जीवन पथ की हो राह।


अब तो यही है मेरी चाह।


तुम्हारे नैन तेज तलवार।


सहे जाते नहि मुझसे वार।


रुप की तुम अद्वितीय हो खान।


मुझे लगती हो बड़ी महान।


आँखों मे बसता तेरा चित्र।


तुम्हारा प्रेम नदी सा पवित्र।


वो मुखमण्डल पर अनुपम तेज।


लगे जैसे फूलों की सेज।


वो अधरों पर मीठी मुस्कान।


कराती तृषित को ज्यों रसपान।


ईश का तुम अनुपम वरदान।


तेरे आगे हम हैं नादान।


हृदय में करुणा भरी अपार।


मृदुल मुख के तेरे उदगार।


प्रिये मैं कैसे भूलूँ आज।


कराये हैं तुमने जो काज।


बहुत मुझ पर तेरा अहसान।


मेरी हर साँस तुम पे कुर्बान।


 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


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