काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार मीना विवेक जैन

मीना विवेक जैन


2-पिता--श्रीमान गुलाब चंद्र जी जैन


3-पति का नाम -श्री विवेक जैन


4- पता -जैन दूध डेयरी वारासिवनी, जिला बालाघाट, म.प्र.


5- फोन नं.- 8821821849


6- जन्म तिथि -1-6-84


7- जन्म स्थान-शाहगढ़


8- शिक्षा--वी.ए.


9- व्यवसाय--ग्रहणी


10-प्रकाशित रचनाओं की संख्या--लगभग 60


11- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या /


सांक्षा संग्रह-- 


1.स्पंदन, 


2.वूमन आवाज,


3.विश्व हिंदी सागर,


4.नारी शक्ति सागर, 


5.काव्य रंगोली 2019,


6.वूमन आवाज भाग2, 


7.माँ,


8.होली हुडदंग


9.रंग बरसे


10-भारत माता की जय


11-माँ की पाती बेटी के नाम


12-नारी तुम सृजन की


13-स्त्रीत्व


14-वूमन आवाज भाग 3


15-स्त्री पुरूष पूरक या प्रतिद्वंद्वी


और अंतराशब्दशक्ति बेबसाइट पर रचनाएँ


एकल संग्रह-  


1.अहसास, 


2.सृजन समीक्षा


3-बदलाव


लोकजंग अखबार में रचनाएँ प्रकाशित


12- प्राप्त सम्मान--1.अंतराशब्दशक्ति सम्मान2018,


2.भाषा सारथी सम्मान, 


3.मैथिली शरण गुप्त स्मृति सम्मान, 


4.राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा सम्मान,


5.वूमन आवाज सम्मान,


6.काव्य रंगोली द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, 


7.राष्ट्रीय आंचलिक संस्थान द्वारा साहित्य समाज सेवी सम्मान,


8,नारी शक्ति सागर सम्मान


9-काव्य रंगोली नारी रत्न सम्मान


10-साहित्य शिल्पी सम्मान


11-मातृत्व ममता सम्मान


12-अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान


13-विश्व हिंदी सागर द्वारा, मातृभूमि सम्मान


14-बहुभाषी सम्मान(हैदराबाद)


15-साहित्य साधक सम्मान


16-साहित्य शीर्षक परिषद द्वारा सम्मान


17-हेल्थ क्लब वारासिवनी द्वारा सम्मान


18-संस्कार भारती द्वारा सम्मान


 


मेरी पाँच रचनाएँ


1


 


दुर्मिल सवैया, वार्णिक छंद


8सगण


 


बिटिया सुनना कुछ ना कहना, सबके मन की बनके रहना


मनमें करूणां सबके रखना, तुम जीवन में खुशियां भरना


खुशबू बनके बिखरे रहना ,सबसे नित ही मिलके रहना


सुनना पहले फिर है कहना, बिटिया समझो पितु का कहना


 


2


 


लकडी का ऋण


 


जीवन भर जिनके साथ जिये


जीवन में जिनके लिए जिये


वो साथ नहीं जाते कोई


चाहे कितने उपकार किये


लेकिन जिनसे जीवन चले


उपकार उसी का भूल गये


संग शरीर के कोई न जाता


बस सूखी लकडी साथ जले 


लकडी के ऋण को भूल न जाना


मन में एक संकल्प बनाना


अंत समय आने के पहले


बृक्षारोपण करके जाना


 


3


 


माँ सरस्वती


 


माँ सरस्वती के चरणों में


मैं नित-नित शीश झुकाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत -मस्तक हो जाती हूँ


 


मिले स्वर्ग की संपत्ति सारी


नहीं अचम्भा इसमें है


श्रद्धा सहित तुझे जो ध्यावें


सब कुछ उनके बसमें हैं


करूँ स्तुति मैया की मैं


ध्यान उन्हीं का लगाती हूँ


उनकी----------


मोह जाल में फंसी हुई हूँ


धर्म ज्ञान नहीं जाना है


तेरे द्वार पे आई हूँ मैं


अब तुमको पहचाना है


करूँ प्रार्थना मैया की मैं


उनका ही गुण गाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत-मस्तक हो जाती हूँ


 


4


 


सुख-शांति


 


सुख-शांति नहीं मिलती


   खूबसूरत भवनों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   आकर्षक वस्त्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    नई-नई गाडिय़ों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   बहुत सारे रूपयों से


सुख -शांति नहीं मिलतीं 


    आज्ञाकारी पुत्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    छप्पन भोगों से


सुख-शांति नहीं मिलती


     बाहरी आडम्बरों से


सुख-शांति तो मिलती है


   निर्मल कोमल भावों से


सुख शांति तो मिलतीं है


   आत्मा के विशुद्ध परिणामों से


 


5


 


जलता हुआ दिया


 


जलते हुए दिये को देखो


उसकी काया मिट्टी की है


पर उसकी ज्योति से


अंधकार दूर होकर


प्रकाश जगमगा रहा है


मनुष्य की काया भी मिट्टी की है


पर उसकी आत्मा


ज्योतिशिखा है


जिससे चेतना का


ऊध्वर्गमन होता है


आत्मा में कोई मीना विवेक जैन


2-पिता--श्रीमान गुलाब चंद्र जी जैन


3-पति का नाम -श्री विवेक जैन


4- पता -जैन दूध डेयरी वारासिवनी, जिला बालाघाट, म.प्र.


5- फोन नं.- 8821821849


6- जन्म तिथि -1-6-84


7- जन्म स्थान-शाहगढ़


8- शिक्षा--वी.ए.


9- व्यवसाय--ग्रहणी


10-प्रकाशित रचनाओं की संख्या--लगभग 60


11- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या /


सांक्षा संग्रह-- 


1.स्पंदन, 


2.वूमन आवाज,


3.विश्व हिंदी सागर,


4.नारी शक्ति सागर, 


5.काव्य रंगोली 2019,


6.वूमन आवाज भाग2, 


7.माँ,


8.होली हुडदंग


9.रंग बरसे


10-भारत माता की जय


11-माँ की पाती बेटी के नाम


12-नारी तुम सृजन की


13-स्त्रीत्व


14-वूमन आवाज भाग 3


15-स्त्री पुरूष पूरक या प्रतिद्वंद्वी


और अंतराशब्दशक्ति बेबसाइट पर रचनाएँ


एकल संग्रह-  


1.अहसास, 


2.सृजन समीक्षा


3-बदलाव


लोकजंग अखबार में रचनाएँ प्रकाशित


12- प्राप्त सम्मान--1.अंतराशब्दशक्ति सम्मान2018,


2.भाषा सारथी सम्मान, 


3.मैथिली शरण गुप्त स्मृति सम्मान, 


4.राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा सम्मान,


5.वूमन आवाज सम्मान,


6.काव्य रंगोली द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, 


7.राष्ट्रीय आंचलिक संस्थान द्वारा साहित्य समाज सेवी सम्मान,


8,नारी शक्ति सागर सम्मान


9-काव्य रंगोली नारी रत्न सम्मान


10-साहित्य शिल्पी सम्मान


11-मातृत्व ममता सम्मान


12-अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान


13-विश्व हिंदी सागर द्वारा, मातृभूमि सम्मान


14-बहुभाषी सम्मान(हैदराबाद)


15-साहित्य साधक सम्मान


16-साहित्य शीर्षक परिषद द्वारा सम्मान


17-हेल्थ क्लब वारासिवनी द्वारा सम्मान


18-संस्कार भारती द्वारा सम्मान


 


मेरी पाँच रचनाएँ


1


 


दुर्मिल सवैया, वार्णिक छंद


8सगण


 


बिटिया सुनना कुछ ना कहना, सबके मन की बनके रहना


मनमें करूणां सबके रखना, तुम जीवन में खुशियां भरना


खुशबू बनके बिखरे रहना ,सबसे नित ही मिलके रहना


सुनना पहले फिर है कहना, बिटिया समझो पितु का कहना


 


2


 


लकडी का ऋण


 


जीवन भर जिनके साथ जिये


जीवन में जिनके लिए जिये


वो साथ नहीं जाते कोई


चाहे कितने उपकार किये


लेकिन जिनसे जीवन चले


उपकार उसी का भूल गये


संग शरीर के कोई न जाता


बस सूखी लकडी साथ जले 


लकडी के ऋण को भूल न जाना


मन में एक संकल्प बनाना


अंत समय आने के पहले


बृक्षारोपण करके जाना


 


3


 


माँ सरस्वती


 


माँ सरस्वती के चरणों में


मैं नित-नित शीश झुकाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत -मस्तक हो जाती हूँ


 


मिले स्वर्ग की संपत्ति सारी


नहीं अचम्भा इसमें है


श्रद्धा सहित तुझे जो ध्यावें


सब कुछ उनके बसमें हैं


करूँ स्तुति मैया की मैं


ध्यान उन्हीं का लगाती हूँ


उनकी----------


मोह जाल में फंसी हुई हूँ


धर्म ज्ञान नहीं जाना है


तेरे द्वार पे आई हूँ मैं


अब तुमको पहचाना है


करूँ प्रार्थना मैया की मैं


उनका ही गुण गाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत-मस्तक हो जाती हूँ


 


4


 


सुख-शांति


 


सुख-शांति नहीं मिलती


   खूबसूरत भवनों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   आकर्षक वस्त्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    नई-नई गाडिय़ों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   बहुत सारे रूपयों से


सुख -शांति नहीं मिलतीं 


    आज्ञाकारी पुत्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    छप्पन भोगों से


सुख-शांति नहीं मिलती


     बाहरी आडम्बरों से


सुख-शांति तो मिलती है


   निर्मल कोमल भावों से


सुख शांति तो मिलतीं है


   आत्मा के विशुद्ध परिणामों से


 


5


 


जलता हुआ दिया


 


जलते हुए दिये को देखो


उसकी काया मिट्टी की है


पर उसकी ज्योति से


अंधकार दूर होकर


प्रकाश जगमगा रहा है


मनुष्य की काया भी मिट्टी की है


पर उसकी आत्मा


ज्योतिशिखा है


जिससे चेतना का


ऊध्वर्गमन होता है


आत्मा में कोई मीना विवेक जैन


2-पिता--श्रीमान गुलाब चंद्र जी जैन


3-पति का नाम -श्री विवेक जैन


4- पता -जैन दूध डेयरी वारासिवनी, जिला बालाघाट, म.प्र.


5- फोन नं.- 8821821849


6- जन्म तिथि -1-6-84


7- जन्म स्थान-शाहगढ़


8- शिक्षा--वी.ए.


9- व्यवसाय--ग्रहणी


10-प्रकाशित रचनाओं की संख्या--लगभग 60


11- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या /


सांक्षा संग्रह-- 


1.स्पंदन, 


2.वूमन आवाज,


3.विश्व हिंदी सागर,


4.नारी शक्ति सागर, 


5.काव्य रंगोली 2019,


6.वूमन आवाज भाग2, 


7.माँ,


8.होली हुडदंग


9.रंग बरसे


10-भारत माता की जय


11-माँ की पाती बेटी के नाम


12-नारी तुम सृजन की


13-स्त्रीत्व


14-वूमन आवाज भाग 3


15-स्त्री पुरूष पूरक या प्रतिद्वंद्वी


और अंतराशब्दशक्ति बेबसाइट पर रचनाएँ


एकल संग्रह-  


1.अहसास, 


2.सृजन समीक्षा


3-बदलाव


लोकजंग अखबार में रचनाएँ प्रकाशित


12- प्राप्त सम्मान--1.अंतराशब्दशक्ति सम्मान2018,


2.भाषा सारथी सम्मान, 


3.मैथिली शरण गुप्त स्मृति सम्मान, 


4.राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा सम्मान,


5.वूमन आवाज सम्मान,


6.काव्य रंगोली द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, 


7.राष्ट्रीय आंचलिक संस्थान द्वारा साहित्य समाज सेवी सम्मान,


8,नारी शक्ति सागर सम्मान


9-काव्य रंगोली नारी रत्न सम्मान


10-साहित्य शिल्पी सम्मान


11-मातृत्व ममता सम्मान


12-अक्षय काव्य सहभागिता सम्मान


13-विश्व हिंदी सागर द्वारा, मातृभूमि सम्मान


14-बहुभाषी सम्मान(हैदराबाद)


15-साहित्य साधक सम्मान


16-साहित्य शीर्षक परिषद द्वारा सम्मान


17-हेल्थ क्लब वारासिवनी द्वारा सम्मान


18-संस्कार भारती द्वारा सम्मान


 


मेरी पाँच रचनाएँ


1


 


दुर्मिल सवैया, वार्णिक छंद


8सगण


 


बिटिया सुनना कुछ ना कहना, सबके मन की बनके रहना


मनमें करूणां सबके रखना, तुम जीवन में खुशियां भरना


खुशबू बनके बिखरे रहना ,सबसे नित ही मिलके रहना


सुनना पहले फिर है कहना, बिटिया समझो पितु का कहना


 


2


 


लकडी का ऋण


 


जीवन भर जिनके साथ जिये


जीवन में जिनके लिए जिये


वो साथ नहीं जाते कोई


चाहे कितने उपकार किये


लेकिन जिनसे जीवन चले


उपकार उसी का भूल गये


संग शरीर के कोई न जाता


बस सूखी लकडी साथ जले 


लकडी के ऋण को भूल न जाना


मन में एक संकल्प बनाना


अंत समय आने के पहले


बृक्षारोपण करके जाना


 


3


 


माँ सरस्वती


 


माँ सरस्वती के चरणों में


मैं नित-नित शीश झुकाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत -मस्तक हो जाती हूँ


 


मिले स्वर्ग की संपत्ति सारी


नहीं अचम्भा इसमें है


श्रद्धा सहित तुझे जो ध्यावें


सब कुछ उनके बसमें हैं


करूँ स्तुति मैया की मैं


ध्यान उन्हीं का लगाती हूँ


उनकी----------


मोह जाल में फंसी हुई हूँ


धर्म ज्ञान नहीं जाना है


तेरे द्वार पे आई हूँ मैं


अब तुमको पहचाना है


करूँ प्रार्थना मैया की मैं


उनका ही गुण गाती हूँ


उनकी बाणी को सुनकर मैं


नत-मस्तक हो जाती हूँ


 


4


 


सुख-शांति


 


सुख-शांति नहीं मिलती


   खूबसूरत भवनों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   आकर्षक वस्त्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    नई-नई गाडिय़ों से


सुख-शांति नहीं मिलती


   बहुत सारे रूपयों से


सुख -शांति नहीं मिलतीं 


    आज्ञाकारी पुत्रों से


सुख-शांति नहीं मिलती


    छप्पन भोगों से


सुख-शांति नहीं मिलती


     बाहरी आडम्बरों से


सुख-शांति तो मिलती है


   निर्मल कोमल भावों से


सुख शांति तो मिलतीं है


   आत्मा के विशुद्ध परिणामों से


 


5


 


जलता हुआ दिया


 


जलते हुए दिये को देखो


उसकी काया मिट्टी की है


पर उसकी ज्योति से


अंधकार दूर होकर


प्रकाश जगमगा रहा है


मनुष्य की काया भी मिट्टी की है


पर उसकी आत्मा


ज्योतिशिखा है


जिससे चेतना का


ऊध्वर्गमन होता है


आत्मा में कोई मिलावट


नहीं होती है


आत्मा में कोई कडवाहट


नहीं होती है


जीवन की सार्थकता को


अगर जान लेगें तो


आत्मा में बस


मुस्कुराहट होती है


 


मीना विवेक जैन


 


 


 


मिलावट


नहीं होती है


आत्मा में कोई कडवाहट


नहीं होती है


जीवन की सार्थकता को


अगर जान लेगें तो


आत्मा में बस


मुस्कुराहट होती है


 


मीना विवेक जैन


 


 


 


मिलावट


नहीं होती है


आत्मा में कोई कडवाहट


नहीं होती है


जीवन की सार्थकता को


अगर जान लेगें तो


आत्मा में बस


मुस्कुराहट होती है


 


मीना विवेक जैन


 


 


 


 


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