काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार

रश्मि लता मिश्रा


पति-एम एल मिश्रा


जन्म-30,06,1957


शिक्षा-एम ए, हिंदी


प्रोफे-शिक्षिका D A V शाला


में हिंदी शिक्षिका से सेवा निवृत्त


साहित्य-कविता,हाइकू, कहानी, आलेख में रुचि


प्रकाशन दो भजन संग्रह राम रस,नवदुर्गा रस काव्य संकलन


'मेरी अनुभूतियाँ,साझा संकलन


मेरा मत ,बज्म यै हिन्द,साहित्य अंकुर, भावांजलि,अलकनंदा साझा संकलन, वतन के रखवाले,


प्रसारण-आकाश वाणी बिलासपुर से दो कहानियाँ,8 भजनों की सी,डी स्वरांजलि स्टूडियो रायपुर से।


सम्मान बज्म यै हिंदी,


इंटरनेशनल भव्या, युथ अवार्ड ,


उम्मीद रत्न,आगमन तेजस्विनी


कर्मवीर,प्रेम साहित्य अटल 


 प्रेम साहित्य सम्मान भजनसंग्रह


पर,निराला स्मृति सम्मान मेरी 


अनुभूतियां कव्यसंग्रह पर ,उम्मीदरत्न,त्रिलोचनसम्मान


व अन्य ऑनलाइन ।


 


के के समाज मे उपाध्यक्ष


लॉयन्स,लायनेस क्लब 


G D फाउंडेशन में सी जी की प्रदेश अध्यक्ष, आगमन में सी.जी की प्रदेश अध्यक्ष, मातृभाषा उन्नयन संस्थान में भी प्रदेश अध्यक्ष।आन लाइन पटल पर


निर्णायक मंडल में,वतन के रखवाले व चमकते सितारे काव्य संग्रह में सह संपादक की भूमिका


व अन्य पत्रिकाओं में भी।


यथा शक्ति सक्रिय भूमिका


पता A 39 सोन गंगा कॉलोनी,सरकंडा,


बिलासपुर, सी जी


 


कविता-1


ऋण साथ चलेगा


 


जाऊंगी जब जहां से एकऋण तो साथ चलेगा।


माँ!वह तेरा ही ऋण होगा,जिसे


इस जन्म के तो क्या ?


कई जन्मों में भी ना चुका पाऊंगी।


दुनिया के लिए तू कैसी है,


मुझे इससे क्या?


पर अपने बच्चों हेतु मां ईश्वर उपहार है।


उनकी इस सौगात की छत्र छाया तले में पली मेरी खुशियां पाली मेरे सुख-दुख मेरी जरूरतों को सदा तूने सबसे ऊपर रखा।


अपने ढेरों बच्चों के पालन पोषण से


ना तू ऊबी ना तेरा मन ऊबा।


पुनः बच्चों के भी बच्चों को संभालने की तमन्ना पाली।


ममता भी परीक्षा से अछूती ना रहे और,


वह परीक्षा की घड़ी भी


तेरे समक्ष प्रस्तुत हुई,


कहां इंतजार था अपनी बच्ची की


आने वाली खुशियों का,,,,,,,


और कहाँ,,,,


स्वयं की जन्म दात्री काल के गाल में समा गई।


पर धन्य है मां तू धन्य है,,,


मां की ममता कुछ दूरियों की उलझन कहे आने वाले मेहमान का बंधन अंत मे,


ममता की कड़ी ज्यादा मजबूत निकली भले ही उमड़ पड़ी मन की व्यथा,


आंखों से सैलाब बनकर।


आज भी तेरी उस मजबूरी को याद कर सिहर उठता है मन


और कहता है धन्य है ममता का रंग।


यह रंग तब मन से कैसे धुलेगा?


इसीलिए कहती हूं मां तू ही बता तेरा ऋण कैसे चुकेगा।


जाऊंगी जहां से तो,,,,ये


ऋण साथ चलेगा,ऋण साथ चलेगा।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर, सी,जी


 


कविता-2


 


है कंटक से पूर्ण प्रेम पथ,


जरा सँभल कर पाँव पड़े।


 


 


जाना है प्रियतम गली में,


प्रिय बाँहे पसारखड़े।


है कंटक से पूर्ण प्रेम पथ,


जरा सँभल कर पाँव पड़े।


 


मिलन हृदय का पावन प्यारा,


   जीवन का बने आधार,


छोटी-छोटी बातें लेकर,


बनी हुई न बात बिगड़े।


है कंटक से पूर्ण प्रेम पथ,


जरा सँभल कर पाँव पड़े।


 


प्रेम माता ,पिता के जैसा


प्रेम ईश्वर का प्रसाद।


प्रेम से ये सृष्टि है सारी,


प्रेम से सब सबंध जुड़े।


है कंटक से पूर्ण प्रेम पथ,


जरा सँभल कर पाँव पड़े।


 


प्रेम प्रकृति है प्रेम सुगंध,


कीट, पतंगे प्रेम मयसब।


मीरा , तुलसी रस प्रेम पगे,


भक्ति भाव संग भजन गढ़े।


है कंटक से पूर्ण प्रेम पथ,


जरा सँभल कर पाँव पड़े।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर


 


 


कविता-3


दृढ़ संकल्प ये अंतस मन मे,


प्रयत्न करम हेतु धर लो।


अब संभव है इस जीवन में,


जो चाहो हासिल कर लो।


 


माना बाधाएं हैं अनेक,


इरादे भी न किसी के नेक।


अनदेखा कर दोष पराए,


खुद पकड़ साची डगर लो।


अब संभव है इस जीवन में,


जो चाहो हासिल कर लो।


 


जीवन है संग्राम सरीखा,


समुद्र शांत -अशांत दीखा।


मर्यादित रूपसागर देखो,


भले गुण को मन मे भर लो।


अब संभव है इस जीवन में


जो चाहो हासिल कर लो।


 


है पतझड़ बहार भी आती,


बाग प्रकृति भी सजाती।


खिलाये जाते उजड़े चमन,


प्रतिज्ञा मन में गर कर लो।


अब संभव है इस जीवन में


जो चाहो हासिल कर लो।


 


परोपकार की बातें निराली


देखे सब की हरियाली।


जल बाढ़े ज्यों नाव सरीखे,


धन की झोली हल्की कर लो।


अब संभव है इस जीवन में,


जो चाहो हासिल कर लो।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर सी जी


 


चित्र चिंतन


 


 


कविता-4 नवगीत


शीर्षक औरत के अवतार


 


आया नया युग है पंख पसार,


स्त्री ने हैं लिये नव अवतार।


 


लक्ष्मी, दुर्गा का सा रूप बनाये,


भूमिकाएं अनेको निभाये।


घर, ऑफिस, मोबाइल,कूकर सब


संग जैसे हों बाहें चार।


आया नया युग हैपँख पसार,


स्त्री ने हैं लिए नव अवतार।


 


ऑफिस वाली फाइल रख लें


लैपटॉप थैले में भर लें।


फुरसत ना अब खाने-पीने की भी


बजा फोन देखो कई बार।


आया नया युग है पँख पसार,


स्त्री ने हैं लिए नव अवतार।


 


थामे अपनी अहम जिम्मेवारी,


है ये भारत की ही नारी।


थोड़ा उसको भी समझो गर जो


स्वर्ग बन जाये फिर घर-द्वार।


आया न या युग है पँख पसार,


स्त्री ने हैं लिये नव अवतार।


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर, सी,जी


 


 


कविता-5


 मजदूर नवगीत 


शीर्षक मजदूर हूँ मैं


 


मजदूर हूं मैं न मजबूर हूं मैं,


श्रम का देखो गुरुर हूँ मैं।


 


दो हाथों का है मुझको सहारा,


चलता इन्हीं से है गुजारा।


फिर ना कहना ना मुझको पुकारा


कामों में अपने मशगूल हूं मैं


मजदूर हूं मैं न मजबूर हूं मैं।


 


नींव का पत्थर बनू सदा ही,


ले लूं श्रेय मुझको मनाही


रब चाहेगा देगा दिला ही


परिश्रम से ही तो मशहूर हूँ मैं


मजदूर हूँ मैं न मजबूर हूँ मैं।


 


मेहनत ,पूजा तो मान करो ना


श्रमिकों का अपमान करो ना।


अधिकार मेरा स्वीकार करो ना


हक दो मुझे तो बोल दूँ मैं


मजदूर हूँ मैं,नमज़बूर हूँ मैं


श्रम का देखो गुरुर हूँ मैं।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर सी जी।


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