काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ. हरि नाथ मिश्र

-डॉ0हरि नाथ मिश्र


पिता का नाम-स्मृति शेष श्री पंडित जगदीश मिश्र।


माता का नाम-स्मृति शेष श्रीमती रेखा मिश्रा।


शिक्षा-एम0 ए0 अँगरेजी, पीएच0 डी0।


पूर्व विभागाध्यक्ष-अँगरेजी, का0 सु0 साकेत सनारकोत्तर महाविद्यालय,अयोध्या,उ0प्र0।


उपलब्धियाँ-सेवा-काल में डॉ0राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से अँगरेजी विषय में शोध करने वाले लगभग 25 शोधार्थियों के पर्यवेक्षण का कार्य।अँगरेजी विषय के पाठ्यक्रम सम्बंधी पुस्तकों का।लेखन।


प्रकाशित रचनाएँ-श्रीरामचरितबखान(अवधी में)


श्रीकृष्णचरितबखान(अवधी में)


गीता-सार(अवधी में)


एक झलक ज़िंदगी की(कविता-संग्रह)


धूप और छाँव(कविता-संग्रह)


इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों पर लिखी हुईं सैकड़ों कविताएँ।


वर्तमान पता-7/3/38,उर्मिल-निकेतन,गणेशपुरी, देवकाली रोड, फैज़ाबाद,अयोध्या।उ0प्र0।


संपर्क-9919446372


 


कविताये-1


नवभारत-संकल्प तो केवल इतना है,


सबका झंडा एक तिरंगा अपना है।


हुआ अभिन्न अंग कश्मीर पुनः भारत का-


अगस्त पाँच उन्नीस को,पूर्ण हुआ वो सपना है।।


                                 सबका झंडा एक...........।।


सबका है कश्मीर और कश्मीर के सब हैं,


हिंदू-मुस्लिम-सिक्ख-इसाई, कश्मीरी अब हैं।


कर न सकेगी उन्हें अलग,अब कानूनी धारा-


नव निर्मित इतिहास का बस यह कहना है।।


                           सबका झंडा एक...............।।


पलट गया इतिहास सियासतदानों का,


बिगड़ गया जो खेल था सत्तर सालों का।


मिला पटल आज़ादी का उस माटी को-


स्वर्ग सरीखी अनुपम जिसकी रचना है।।


                       सबका झंडा एक..................।।


हुआ अंत अब हिंसावाद हिमायत का,


अलगाववाद की बेढब नीति रवायत का।


धरे रह गये ताख पे सब मंसूबे उनके-


जिनका लक्ष्य तो केवल ठगना है।।


                    सबका झंडा एक.....................।।


हुईं दुकानें बंद सभी धर्मान्धों की,


कट्टरपंथी ताकत कुत्सित धंधों की।


नयी दिशा अब मिलेगी सब नवयुवकों को-


करेंगे निज उत्थान स्वयं जो करना है।।


                 सबका झंडा एक..................।।


देश सुरक्षित रहेगा,संग कश्मीर भी,


बिगड़ेगी नापाक पाक तक़दीर भी।


होगा शीघ्र विनाश विरोधी ताक़त का-


नहीं बेढंगा दाँव कुटिल अब सहना है।।


                सबका झंडा एक...................।।


होगा पूर्ण विकास स्वर्ग सी घाटी का,


होगा अब आग़ाज़ नयी परिपाटी का।


पुनः खिलेगा पुष्प सुगंधित मानवता का-


भारत का जो रहा सदा से गहना है।।


      सबका झंडा एक तिरंगा अपना है।।


            डॉ. हरि नाथ मिश्र-9919446372


 


कविताये-2


*,बेफ़िक्र हो के ज़िंदगी जीना....*


बेफ़िक्र हो के ज़िंदगी जीना है अति भला,


गर रोड़ें आएँ राह में तो करना नहीं गिला।।


 


आए ग़मों का दौर तो न धैर्य छोड़ना,


खोना नहीं विवेक जंग से मुहँ न मोड़ना।


जीवन का है ये फ़लसफ़ा समझ लो दोस्तों-


जिसने जीया है इस तरह उसी को सब मिला।।


 


पर्वत-शिखर पे झूम के बादल हैं बरसते,


नदियों के जल-प्रवाह तो थामे नहीं थमते।


जिन शोखियों से शाख़ पे निकलतीं हैं कोपलें-


थमने न देना ऐसा कभी शोख़ सिल-सिला।।


 


क़ुदरत का ही कमाल है ये सारी क़ायनात,


होता कहीं पे दिन है तो रहती कहीं पे रात।


ग़ुम होते नहीं तारे चमका करे ये सूरज-


महके है पूरी वादी ये फूल जो खिला ।।


 


जब नाचता मयूर है सावन में झूम के,


कहते हैं होती वर्षा अति झूम-झूम के।


जो श्रम किया है तुमने वो फल अवश्य देगा-


मेहनतकशों के श्रम का मीठा है हर सिला।।


        गर रोड़ें आएँ राह में तो करना नहीं गिला।।


                      ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                         9919446372


 


कविताये-3


*कुछ दोहे*


सुरभित मधुरालय खुले,लंबी लगी कतार।


भूल गए सब मुदित मन,कोरोना का वार।।


 


चावल-आटा-दाल की,चिंता छोड़ जनाब।


जा पहुँचे मधु-द्वार पर,घर की दशा खराब।।


 


डंडा-सोटा-स्वाद ले,डटे रहे पुरजोर ।


बोतल बंद शराब ने,दिया प्रशासन झोर।।


 


बिना चुकाए दाम ही,राशन दे सरकार।


पुनः वसूले मूल्य वह,खोल जेब के द्वार।।


 


दिखीं बहुत सी देवियाँ, मय-मंदिर के द्वार।


वित्त लिए निज पर्स में,नारी-शक्ति अपार।।


 


अपनी भाग्य सराहते,दिखे सभी मधु-केंद्र।


क्या राजा,क्या रंक है,खड़े दिखे धर्मेंद्र।।


 


सीना ताने गर्व से,मुदित सुता अंगूर।


मानो यह कहती फिरे, मानव-मन लंगूर।।


 


पल-भर के सुख के लिए,घोर करे अपराध।


जीवन से खिलवाड़ कर,करे पाप निर्बाध।।


 


माना मानव सभ्य है,यह संस्कृति-आधार।


किंतु कभी विपरीत हो,खोए शुद्ध विचार।।


                ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                   9919446372


 


कविताये-4


*गीत*


काव्य-कुंज में कवि-मन कुहके,


हो सम्मोहित रसपान करे।


भाव-पुष्प जो विविध खिले हैं-


 उनपर नूतन नित गान करे।।


             काव्य-कुंज में..............।।


 


बिना भाव-चिंतन के कविता,


संभव क़लम नहीं करती है।


हृदय-सिंधु में भाव-उर्मि ही,


उठकर नित लेखन करती है।


कवि-मन हो अति हर्षित-प्रमुदित-


सृजन भी अतीव महान करे।।


             काव्य-कुंज में.........।।


 


ध्यानावस्थित होने पर ही,


नेत्र तीसरा भी खुलता है।


भावों का आवेग प्रखर हो,


मन-रस में ही आ घुलता है।


मधुर भाव अति शीघ्र उमड़ कर-


अक्षर-कृति का अवदान करे।।


              काव्य-कुंज में...........।।


भाव-तरंगें अति स्वतंत्र हों,


प्रबल उमड़तीं रहतीं पल-पल।


प्रखर भाव भी तब कवि-मन को,


देता सदा सहारा-संबल।


कवि भी तो तब हो सतर्क मन-


अति सक्षम गीत- विधान करे।।


                 काव्य-कुंज में.............।।


 


कभी मुदित हो,कभी दुखित हो,


कवि-मन का भावालय बनता।


भाव-सिंधु का कर अवगाहन,


पवित्र भाव-देवालय बनता।


चिंतन-मनन-साधना के बल-


कवि मुक्ता-स्वर निर्माण करे।।


               काव्य-कुंज में..............।।


काव्य-कुंज की ले सुगंध वह,


गीतों को भी महकाता है।


पा प्रसाद सुर-देवी से वह,


भाव-सुरभि नित फैलाता है।


सृजन-भाव में डूब-डूब कर-


ज्ञान-सरित में नहान करे।।


             काव्य-कुंज में....…........।।


 


धन्य कलम तेरी भी कविवर,


रवि-सीमा को भी पार करे।


 अप्रत्याशित रेख पार कर,


लेखन-सुकर्म साकार करे।


अद्भुत रचना दे इस जग को-


सुर-देवी का सम्मान करे।।


          काव्य-कुंज में.............।।


               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


               


 


कविताये-5


भारत माता के वीर सपूतों,


अपनी धरती का कर लो नमन।


ऐसी माटी तुम्हें न मिलेगी-


कर लो टीका समझ इसको चंदन।।


                  ऐसी माटी तुम्हें.........।।


इसके उत्तर में गिरिवर हिमालय,


जो प्रहरी है इसका अहर्निश।


चाँदनी की धवलिमा लिए-


दक्षिणोदधि करे पाद-सिंचन।।


               ऐसी माटी तुम्हें............।।


इसकी प्राची दिशा में सुशोभित,


गारो-खासी-मेघालय-अरुणाचल।


इसके पश्चिम निरंतर प्रवाहित-


सिंधु सरिता व धारा अदन।।


              ऐसी माटी तुम्हें..............।।


शीष कश्मीर ऐसे सुशोभित,


स्वर्ग-नगरी हो जैसे अवनि पर।


गंगा-कावेरी-जल-उर्मियों से-


देवता नित करें आचमन।।


              ऐसी माटी तुम्हें.............।


पुष्प अगणित खिलें उपवनों में,


मृग कुलाँचे भरें नित वनों में।


वर्ष-पर्यंत ऋतुरागमन है-


लोरी गाये चतुर्दिक पवन।।


            ऐसी माटी तुम्हें...............।।


अपनी धरती का गौरव रामायण,


सारगर्भित वचन भगवद्गीता।


मार्ग-दर्शन कराएँ अजानें-


वेद-बाइबिल का अद्भुत मिलन।।


          ऐसी माटी तुम्हें.................।।


इसकी गोदी में खेले शिवाजी,


राणा-गाँधी-जवाहर-भगत सिंह।


चंद्रशेखर-अटल की ज़मीं ये-


बाल गंगा तिलक का वतन।।


   ऐसी माटी तुम्हें न मिलेगी,कर लो टीका समझ इसको चंदन.....भारत माता के वीर सपूतों.....।।


           ©


          


 


 


 


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