काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार प्रिया सिंह लखनऊ


शिक्षा:- स्नातक 


जन्म तारीख:- 02/06/1996


पता:- श्रीमद दयानंद बाल सदन मोती नगर लखनऊ 226004 उत्तर प्रदेश 


संपर्क सूत्र:-8887064914


email address:- ps3067381@gmail. com


 


कविताये


प्रीत के गीत का.....जपन हो रहा


देखो दो नयनों का ....गमन हो रहा


 


फूल..कलियाँ..नजारे.. हैरान हैं 


राम क्या इस जगह के मेहमान हैं 


बंजर बंजर भी अब तो चमन हो रहा


देखो दो नयनों का... गमन हो रहा


 


सूखे पत्ते पर सजी थी वो स्वाति हंसी


कण कण में राम की ही ख्याति बसी


दो अधरों से उनका आचमन हो रहा


देखो दो नयनों का..... गमन हो रहा


 


रामलीला गजब की है न्यारी बहुत


है मुस्कुराहट सीता की प्यारी बहुत  


प्रेम के जीत का फिर सृजन हो रहा


देखो दो नयनों का....गमन हो रहा


 


आत्म की प्रीत को देख खुश हैं सभी


प्यार की शीत को देख खुश हैं सभी


उस ईश्वर का सत सत नमन हो रहा


देखो दो नयनों का.....गमन हो रहा


 


लेकर राम सीता को.......घर आये हैं 


वरदान अपने संग.......अजर लाये हैं


लेकर सातों वचन.....आगमन हो रहा


देखो दो नयनों का.......गमन हो रहा


 


@Priya_Singh


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ना किरदार की दरकार है


ना ये कहानी मजेदार है 


लय तुकान्त बंधक बन


कलम इनकी संगत बन


जलाता ये झंजार है 


इसका अनूठा श्रंगार है


ना किरदार की दरकार है 


ना ये कहानी मजेदार है 


 


खयालातों का उदगार है


इसमें भावों का संसार है


ठुमकती हुई गंगा की धार है


खूबसूरती इसकी उतरती मन में 


इसका गंध बिखरता जीवन में 


ये काव्य रस का भरा परिवार है 


खयालातों का महज़ उदगार है 


 


पुरखों का इसमें संस्कार है


शब्दों में गुंथा ये अलंकार है 


प्रस्तावना प्रयोजन प्रकरण 


ना व्याख्या संदर्भ का व्याकरण 


बहर काफिया में बंधा हरिद्वार है


खयालातों का महज़ उदगार है 


 


इसके दर्द शब्दों में शुमार है 


वीर रस की धधकती ये हुँकार है 


है शब्दों की कारीगरी का कमाल 


कविता तो बेशक ही है मालामाल


गीत गजल तरन्नुम में भी झंकार है


खयालातों का महज़ उदगार है 


 


ये कविता बहुत ही इज्जतदार है 


शब्द इसके निहायती समझदार है


रूलाता हँसाता गहरी नींद में लाता


इंसानों में भावनाओं को जगाता


सब को जागरूकता का अधिकार है


खयालातों का महज़ उदगार है 


 


ये सरल पथ का एक ही बस द्वार है 


भजन-कीर्तन संगीत का ये तार है


मीरा की भी भक्तिकाल का परिवेश 


तुलसी का भी साधारण सा हरि वेश


महाभारत और वेद के श्लोक का सार है


खयालातों का महज़ उदगार है 


 


रामायण,गीता,गंगा सा सरोकार है


ये कवियों की प्रिय सलाहकार है 


छन्द,रस सब में इसका झुकाव होना


अतुकांत में अक्सर कुछ सुझाव होना


प्रेम प्रसंग में भी मजबूत हथियार है 


खयालातों का महज़ उदगार है 


 


Priya Singh


 


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गुरु वही जो ग्यान दे


जग में वो सम्मान दे


 


पंखों को नई उडान दे


इच्छाओ की पहचान दे


गुरु वही जो ग्यान दे 


 


बढने का अरमान दे


उन्नति का फरमान दे


गुरु वही जो ग्यान दे 


 


अच्छे-बुरो का संज्ञान दे


खुशीयो का वरदान दे


गुरु वही जो ग्यान दे 


 


सच्चाई पर वो जान दे


किताब को वो मान दे


गुरु वही जो ग्यान दे 


 


छोटी बातों पर ध्यान दे


होठों पर वो राष्ट्रगान दे


गुरु वही जो ग्यान दे 


 


सर पर जो आसमान दे


शब्दों को वो नाम दे


गुरु वही जो ग्यान दे


Priya singh


 


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बंद थे किवाड़े खोल दिये गये


जहर हालात में घोल दिये गये


बंद थे किवाड़े खोल दिये गये 


 


हुकमरां की फरमान ऐसी थी


शराब नस नस में घोल दिये गये 


बंद थे किवाड़े खोल दिये गये 


 


मिट रही जान एक एक कर


जान सस्ती थी मोल दिये गये


बंद थे किवाड़े खोल दिये गये 


 


सवालात बहुत उठे बेनज़ीर से


जवाब सिर्फ गोल गोल दिये गये


बंद थे किवाड़े खोल दिये गये 


 


गरीबी पूछनी है हम से पूछो


रोटी के खातिर झोल दिये गये


बंद थे किवाड़े खोल दिये गये 


 


 


Priya Singh


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औरत नहीं ये कीमती हीरा है


ये गिरिधर की वैरागी मीरा है


इसे छेड़ो मत गलियारों में 


इसकी गिनती है उजियारों में 


ये एक वट की हरियाली शीरा है


ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


 


ये जलती सीता की पीड़ा है


ये बैखौफ सी होती धीरा है


इसे छोड़ों मत अंधियारों में 


इसे जलने दो अगियारों में 


ये सरल स्वभाव गंभीरा है


ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


 


ये समंदर पर बसा जजीरा है


ये बेटी देश की कश्मीरा है


ये आती कहाँ है खाकसारों में 


इसकी गिनती है इज्जतदारों में 


ये वेद की एक इलाजी चीरा है


ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


 


हौसलों की धधकती वीरा है


ये मसाला,मिर्च और जीरा है


कमी नहीं इसके व्यवहारों में 


अद्भुत है नारी संस्कारों में 


रिश्तों में फसी जंजीरा है


ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


 


 


ये बसा खुशहाल मंदीरा है


ये स्वेत प्रेम बानों रघुवीरा है


ये आती है बेशक होशियारों में 


जिल्लत शुमार है अधिकारों में 


ये साफ किरदार शकीरा है


ये चंचल शौख फकीरा है


ये गिरिधर की वैरागी मीरा है 


औरत नहीं ये कीमती हीरा है


 


 


Priya singh


 


 


 


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