काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार रीतु प्रज्ञा 

रीतु प्रज्ञा (शिक्षिका)


उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय करजापट्टी


केवटी, दरभंगा


बिहार


माता:-श्रीमती मीना ठाकुर


पिता:-श्री सदानंद ठाकुर


पति:-अमल झा


शिक्षा:- एम.ए .(अर्थशास्त्र), डी.पी.ई


रूचि:-मैथिली और हिन्दी भाषा में कहानी,कविता, मुक्तक,हायकु, लघुकथा इत्यादि लेखन एवं अध्ययन


प्रकाशित पुस्तकें:-'यादें ', 'दिल के अल्फाज' ,' मेरी धरती, मेरा गाँव ' साझा काव्य संग्रह प्रकाशित


साहित्यिक उपलब्धि:- आनलाइन और आफलाइन कविता पाठ, आनलाइन और आफलाइन सम्मान पत्र प्राप्त ,आकाशवाणी दरभंगा से काव्य पाठ का प्रसारण, समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित


 


चुप क्यों हो?


 


 


चुप क्यों हो माँ?


क्या विवशता है माँ?


करता है अन्याय सदा


इह लोक तुम्हारे साथ


करवा दिया जाता कभी


आत्मजा की भ्रूण हत्या


लगने दिया जाता नहीं 


अरमानों को पंख कभी !


सहती जाती व्यथा सभी


चुप क्यों हो माँ तब भी ?


प्रतिकार करो शक्ति स्वरूपा


सहमी रहती तेरी गुड़िया


देख दानवी क्रूर क्रिया


तपती राह है असहनीय


अस्तित्व रहा है असुरक्षित


अन्त किया जा रहा जीवन 


खिलाकर जहरीली पुड़िया


क्यों चुप हो माँ?


क्या शक्ति तुम्हारी


 हो गयी है नश्वर माँ?


माँ तुम्हीं हो महिषासुरमर्दिनी !


तुम्हीं हो रक्तबीज संहारिणी ।


सकल लोक कल्याणी


संतान रक्षार्थ कर


सदा सुख दायिनी


चुप क्यों हो माँ ?


वेदना के सागर से


अब तो निकलो माँ।


रहती असहाय गाय समान


सहती रहती सदा अपमान


बनी रह गयी हो कठपुतली


हुंकार भरो माँ !


खोलकर जुल्मों की पोटली


क्या तुम्हारा खुद पर


कुछ भी अधिकार नहीं 


सम्मान मिले समाज में


क्या तुम इसकी हकदार नहीं?


चुप क्यों हो माँ?


मुख अपना भी खोलो माँ !


कुछ तो तुम भी बोलो माँ ।


   


  रीतु प्रज्ञा


करजापट्टी , दरभंगा, बिहार


 


हाँ बस यही सच है 


 


मुश्किलें हैं


बारंबार राष्ट्र कह


धैर्य रख जन


तिमिर हरेंगे


शुभ प्रभात आएगी फिर


रवि लाऐंगे नव किरण


होकर रथ पर सवार


हाँ बस यही सच है।


ओतप्रोत निराश घड़ी है


नयनों में है अश्क


पग है विरान


दृष्टि पटल पर


अणगिनत है शूल


हिम्मत रख


स्वयं हिय पर


विकसित होंगे फूल


हाँ बस यही सच है।


अपने देते संग हैं


बाँकी सब माया रंग


सदा न रहते रवि लालिमा


फिर भी होती दूर


भयावह काली रजनी


मृत्यु है तो


जिन्दगी के हैं


सुहावना हसीन पल


हाँ बस यही सच है।


           रीतु प्रज्ञा


       करजापट्टी , दरभंगा , बिहार


 


शीर्षक:-पुस्तक


विधा:-हायकु


 


पुस्तकें प्यारी


सबसे अच्छी सखी


लगती न्यारी ।


 


संग सबके


मुँह न कभी फेरी


पढ चमके।


 


अमूल्य यह


तोहफा अनमोल


हर्षित तह ।


 


ज्ञान की गंगा


बहाती हरपल


करती चंगा।


 


पूजे सकल


पीकर सुधा रस


बढे अकल।


           रीतु प्रज्ञा


   करजापट्टी , दरभंगा , बिहार


 


शीर्षक:- व्यतिथ मन


 


देख - देख दुर्दशा राष्ट्र का व्यतिथ है मन ,


दूर से ही संशय में पलपल कांपता है तन।


अपनों से अपनों का रिश्ता टूटा ,


विष का घड़ा ऐसा फूटा ।


 हर तरफ दिखता है भय का साया ,


प्रदेशों से भागकर बंधुजन ढूंढे गाँवों में सुकुन छाया।


खेतों में सूखे फसलें कृषक के राह ताकते हैं ,


विषम परिस्थिति से मजबूर हो न फसलें काटते हैं।


भूखी नजरें फरिश्ता को नयना अश्क लिए तलाशते हैं ,


अच्छे दिन के इंतज़ार में कुंठित होकर दुआ माँगते हैं।


दम तोड़ रही है जिन्दगानी इलाज के अभाव में


कैद में हो रही हैं बुलबुल वायरस के प्रभाव में


आनलाइन का आया है गजब निराला दौड़ ,


आर्थिक तंगी से जूझते लोग पकड़ इसकी डोर चाहे कौर।


देख -देख दुर्दशा राष्ट्र का व्यतिथ है मन,


दूर से ही संशय में पलपल काँपता है तन।


              रीतु प्रज्ञा


      करजापट्टी , दरभंगा


       संपर्क संख्या:-9973748861


 


विधा:-गीत


विषय:-माँ


शीर्षक:-माँ प्यार तुम्हारा


 


ढूंढू मैं पलपल जहान सारा,


वो है माँ प्यार तुम्हारा ।


मैं हूँ तेरी आँखों का तारा


जन्म दी कष्टों को सहकर सारा


ईश्वर से माँगी , सर्वत्र तीर्थ स्थल आचल फैलाकर


की पैरों पर खड़ा ,सहस्त्र रोड़े हटाकर


ढूंढू मैं पलपल जहान सारा,


वो है माँ प्यार तुम्हारा।


मिलता नहीं जब मुझे कहीं सहारा,


अपने तट मेरी नाव लगाती किनारा।


स्वार्थी रिश्तों से जुड़ती चली जाती ,


सिर्फ तू ही मुझे निस्वार्थ चित्त बसाती।


ढूंढू मैं पलपल जहान सारा,


वो है माँ प्यार तुम्हारा।


               


       करजापट्टी, दरभंगा,बीहार


 


 


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...