काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार रूणा रश्मि "दीप्त"

रूणा रश्मि "दीप्त"


Runa Rashmi


B.Sc. Chemistry honours


B.Ed.


M.A. Hindi


--अभिरुचि: कविताएं, लघुकथा और आलेख लेखन (हिन्दी एवं मैथिली)


-- महिला काव्य मंच की सक्रिय सदस्य।


-- विभिन्न आनलाइन काव्य प्रतियोगिताओं में सक्रिय सहभागिता एवं श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में निरंतर सम्मानित।


-- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में रचनाएं प्रकाशित


-- दो साझा काव्य संग्रह प्रकाशित


--दो एकल काव्य संकलन प्रकाशित


-- दो साझा काव्य संग्रह प्रकाशनाधीन


--सम्मान :


1. आगमन काव्योत्सव एवं सम्मान समारोह


2. आगमन स्थापना दिवस एवं सम्मान समारोह


3. प्राइड आफ वीमेन अवार्ड, 2019


 


runa.rashmi@gmail.com


 


M.no. 9931190744


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1.तांटक छंद


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मुरलीधर कान्हा


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आओ कान्हा मुरली लेकर, संग तुम्हारे मैं झूमूँ,


संग गोपियों राधा बनके, वृंदावन में मैं घूमूँ।


 


धुन में तेरी डूबूँ ऐसे, सुध बुध अपनी मैं भूलूँ,


बावरिया सी गीत सुनाऊँ,वन वन मीरा सी डोलूँ।


 


गिरिवरधारी, कृष्णमुरारी,गोकुल के तुम ग्वाले हो,


नंद दुलारे, मुरलीवाले, मन के तुम मतवाले हो।


 


मात यशोदा के तुम लाला, माखन खूब चुराते हो,


झूठी मूठी कसमें खाते, फिर भी मन को भाते हो।


 


ग्वालबाल सब संगी साथी,गोपिन को भी प्यारे हो,


राधा रानी को तुम भाते, जग में सबसे न्यारे हो।


 


पापी और अधर्मी के तो, तुम बनते संहारक हो,


धर्म डगर पर चलने वालों,के तुम बनते तारक हो।


                                       ©️®️


                                 रूणा रश्मि "दीप्त"


                                   राँची , झारखंड


 


 


2.दोहे


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बेबस मजदूर


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बंद हो गए काम सब, बैठे सब मजदूर।


हैं अपनों से दूर ये, मिलने से मजबूर।।


 


पैदल ही सब चल पड़े, वाहन मिला न कोय।


 देख लिया है दूर तक, साधन दिखा न कोय।।


 


इन बेबस लाचार पर, पड़ी वक्त की मार।


फैलाओ नहि संक्रमण, कहती है सरकार।।


 


जाना संभव है नहीं, वापस अपने प्रान्त।


जाने कब होगा यहाँ, बंदी का अब अन्त।।


 


भोजन बिन कैसे रहें, हम लाचार गरीब।


किंतु कमाने का नहीं, सूझे कुछ तरकीब।।


 


जीवन कटता आस पर, हैं जो दानी लोग।


कृपा करें वे लोग तब, मिलता भोजन भोग।।


 


संकट के इस काल में, पता चला है आज।


मानवता इंसानियत, से है भरा समाज।।


                          ©️®️


                       रूणा रश्मि "दीप्त"


                        राँची , झारखंड


 


 


 


 


3. छंदमुक्त कविता


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अमन


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अमन की बात करते हैं,


लिए तलवार हाथों में।


कहो अब शांति हो कैसे,


है जब अंगार बातों में।


 


दिखे बस स्वार्थ ही अपना,


वतन की फिक्र ना कोई।


करें दुष्कर्म ये ऐसे,


कि माता भारती रोई।


 


करें जाग्रत इन्हें मिलकर,


चेतना शून्य है इनकी।


सिखा दें राह जीने की,


बढ़े सौहार्द्रता जग की।


 


प्रेम की लौ जले दिल में,


बुझे नफरत की चिनगारी।


बढ़ा दें नेह हर दिल में


बनें ये भाव उद्गारी।


 


अमन होगा तभी जग में,


सुकूं औ चैन पाएंगे।


बढ़ेगा भाइचारा भी,


गीत उल्फत के गाएंगे।


                     ©️®️


                 रूणा रश्मि "दीप्त"


                   राँची , झारखंड


 


4. छंदमुक्त कविता


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गीत, गजल और कविता


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व्यक्त हो जब भाव लय में, गीत होता है वही।


काफिया रदीफ के संग, गजल बनता है सही।


 


शब्द संयोजन उचित हो, और सुंदर हो चयन।


और फिर अभिव्यक्ति करते, हम सदा ही कर मनन।


 


शब्द लड़ियों में पिरोकर, गीतमाला गूँथते।


गीत कह लो या गजल ये, मन सभी का मोहते।


 


दर्द-ए-दिल हो बयां या, दास्तां उल्फत भरी।


गीत-गजलों में सदा ही, बात सबने है कही।


 


जोश है भरना दिलों में, या दिखानी भक्ति है।


भाव कविता से जगा दें, यही इसकी शक्ति है।


 


संग ले अहसास अपने, आ गए हम भी यहाँ।


भाव शब्दों संग मिलकर, गीत बनते हैं जहाँ।


                             ©️®️


                         रूणा रश्मि "दीप्त"


                          राँची , झारखंड


 


5. छंदमुक्त कविता


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मेरे प्रियवर


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तुम हो मेरे चंदा प्रियवर


और मैं तेरी चाँदनी।


हर धड़कन का राग तुम्हीं हो,


मैं हूँ तेरी रागिनी।


 


जीवन में संगीत तुम्हीं से,


तुमसे ही हैं गीत मेरे।


मेरे गीतों के बोलों में,


बसते हो मनमीत मेरे।


 


सुदृढ़ तरुवर हो तुम गर तो,


मैं हूँ शाखा मतवाली।


कोमल नन्हीं दूब अगर मैं,


तुमसे मेरी हरियाली।


 


तुम सुरभित हो पुष्प अगर तो


मैं मँडराती तितली हूँ।


इन्हीं सुवासित वायु के संग,


ढ़ूँढने तुमको निकली हूँ।


 


मेरे मन का दीपक हो तुम,


मैं दीपक की बाती हूँ।


अँधियारी काली रातों के,


तुम ही हो मेरे जुगनू।


 


मिलन हमारा ऐसे जैसे


सागर से नदियाँ मिलतीं,


जुदा न होंगे एक दूजे से,


हर धड़कन बस ये कहती।


                         ©️®️


                 


                    राँची , झारखंड


 


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