रेनू द्विवेदी
पति--श्री विनोद कुमार द्विवेदी
जन्मतिथि--01/07/1985
सम्मान-- सृजन युवा सम्मान, नागरिक सम्मान, साहित्य गौरव, साहित्य भूषण, साहित्य रत्न, गीतिका सौरभ, साहित्य साधना ,सारस्वत सम्मान , भारतीय अटल लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड,,कवितालोक आदित्य,साहित्य सुधाकर, आदि!
जन्मस्थान --सोनभद्र
पता---1/410 विशाल खण्ड-1
गोमती नगर लखनऊ
सम्पर्क सूत्र- 9451608364
"गीत"
धरती को माँ कहते हो तो,
सुन्दर इसे बनाओ!
सृष्टि संतुलित करने खातिर,
पर्यावरण बचाओ!
पेड़ -पहाड़ अगर काटोगे,
भू- हो जाएगी बंजर!
आने वाली पीढ़ी को क्या,
दिखलाओगे यह मंजर!
हरियाली से जीवन सुंदर,
सबको यह समझाओ!
सृष्टि-------------
नदियाँ-झरने वृक्ष -लताएँ,
यह सब भू के आभूषण!
हरी -चुनर वसुधा पहने अब,
खूब करो वृक्षारोपण!
रंग -विरंगे फूलों से नित,
धरती को महकाओ!
सृष्टि-----------
जड़-चेतन में औषधियों का,
मिलता खूब खजाना है!
जंगल में मंगल रहने दो,
जीवन अगर बचाना है!
निश्छल प्रेम करो कुदरत से,
अपना फर्ज निभाओ!
सृष्टि-------------
बहुत हो चुका पतन धरा का,
अब तो तुम मानव जागो!
वायु भूमि जल पशु पक्षी को,
अब अपना साथी मानो!
कुदरत की सेवा है करना,
यह संकल्प उठाओ!
सृष्टि----------------
"रेनू द्विवेदी"
"गीत"
मै बेटी हूँ पुष्प सरीखी,
जीवन भर बस दर्द मिला!
पीड़ा मेरी सुनकर देखो,
यह विस्तृत ब्रम्हांड हिला!
जाने किसने फूँक लगा दी,
टूट पाँखुरी बिखर गयी!
सब ने कुचला पैरों से ही,
उड़कर चाहे जिधर गयी!
लुप्त हुआ संवेदन सबका,
किससे-किससे करूँ गिला!
पीड़ा मेरी-–--------
कांप- उठा है अंतस मेरा,
जीवन अब तो बोझिल है!
भीतर से बाहर तक टूटी,
अंग-अंग सब चोटिल है!
टूट खंडहर सा बिखरा है,
सुन्दर था जो रूप किला!
पीड़ा मेरी-----------
कभी निर्भया कभी आशिफा,
बनकर कब तक सहूँ भला!
धारण करके रूप कालिका,
धड़ से दूँ मै काट गला!
पापी का कर दंड सुनिश्चित,
कर्मो का दूँ आज सिला!
पीड़ा मेरी------------
"रेनू द्विवेदी"
"गीत"
आँखों में सागर लहराए
होठों पर मुस्कान खिली है!
आत्म-कक्ष में भंडारे में
दुख की बस सौगात मिली है!
मन उपवन में किया निरीक्षण
प्रेम-पुष्प सब निष्कासित हैं!
सांसों से धड़कन तक फैले
कंटक सारे उत्साहित हैं!
पीडाओं के कंपन से अब
अंतस की दीवार हिली है!
आत्म-कक्ष के--------
उलझ गये रिश्तों के धागे
जगह-जगह पर गाँठ पड़ी है!
द्वार प्रगति के बंद हुए सब
मुश्किल अब हर राह खड़ी है!
सत्य-झूठ की दुविधा में ही
विश्वासों की परत छिली है!
आत्म-कक्ष के---------
प्रश्न सरीखा जीवन जैसे
निशदिन उत्तर ढूढ़ रही हूँ!
पर्वत नदियाँ झरनों से अब
पता स्वयं का पूँछ रही हूँ!
सृष्टि करे संवाद भले पर
सबकी आज जुबान सिली है!
आत्म-कक्ष के-------
"रेनू द्विवेदी"
"गीत"
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!💐💐💐💐💐
अगर तिरंगा प्यारा है तो ,
हिंदी से भी प्यार करो!
इसके अक्षर-अक्षर में नित,
शस्त्र सरीखी धार करो!
युवा वर्ग के कंधे पर अब ,
है यह जिम्मेदारी!
हिंदी की खुशबू से महके,
भारत की फुलवारी!
संस्कृति अगर बचानी है तो,
हिंदी को स्वीकार करो!
इसके -------------
भारत का गौरव कह लो,
या स्वाभिमान की भाषा!
एक सूत्र में बाँधे सबको,
स्नेहिल है परिभाषा!
है भविष्य हिंदी में उज्ज्वल,
इस पर तुम ऐतबार करो!
इसके---------
माँ समान हिंदी हम सब पर,
प्रेम सदा बरसाती!
सहज सरल यह भाषा हमको,
नैतिक मूल्य बताती!
बापू ने जो देखा सपना,
उसको तुम साकार करो!
इसके-------------
अंग्रेजी की फैल गयी है,
घातक सी बीमारी!
इससे पीड़ित भारत सारा,
कैसी यह लाचारी!
हिंदी की रक्षा खातिर इक,
युक्ति नयी तैयार करो!
इसके -----------
"रेनू द्विवेदी"
"गीत"
गाँवों की गलियों से अब तो,
ख़त्म-हुए उल्लास!
मुत्यु-सेज पर लेटी है ज्यों,
जीवन की हर आस!
बूढ़ा बरगद नित रोता है,
किसको दूँ अब छाँव!
चले गए सब शहर कमाने,
छोड़-छोड़ के गाँव!
भौतिकता की चकाचौंध से,
सुस्त हुए अहसास!
मृत्यु सेज--------
अपनों की कटु वाणी ने ही,
दिया कलेजा चीर!
पीड़ा के बादल से बरसे,
नित आँखों से नीर!
व्यंग वाण से अंतस छलनी,
चोटिल सब विश्वास!
मृत्यु सेज----------
खारा सागरआँखों में है,
और ह्रदय तूफान!
रिश्ते नाते जोड़ रहे अब,
मतलब से इन्सान!
त्योंहारों के लड्डू से भी,
गायब हुई मिठास!
मृत्यु सेज--------------
यहाँ भला किसने देखा कल,
यह तो गहरा राज!
कल की चाहत मन में लेकर ,
क्यों खोऊँ मैं आज!
यही सोच मन बहलाऊँ जब,
होती कभी उदास,
मृत्यु सेज-----------------
"रेनू द्विवेदी"
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