दिनांकः २१.०५.२०२०
दिवसः गुरुवार
विषयः योग
छन्दः मात्रिक
विधाः दोहा
शीर्षकः योगक्षेमं वहाम्यहम्
आज मनाएँ योग दिवस ,मिलें करें सब योग।
करें व्यायाम साथ में , स्वयं भगाएँ रोग।।१।।
योग न केवल साधना , नवसर्जन नव सोच।
है समत्व की योजना , करें बिना संकोच।।२।।
स्रोत योग ऊर्जस्विता , नव जागृति जयघोष।
इन्द्रिय जेता नियन्ता , सदा मिटाए रोष।।३।।
योगक्षेमं वहाम्यहम् , निर्माणक विश्वास।
राष्ट्र एकता सूत्र यह , देश भक्ति आभास।।४।।
परहित नित सद्भावना , सत्कर्मी संदेश।
नीति रीति स्नेहिल पथी , योग बने परिवेश।।५।।
राष्ट्र धर्म प्रतिमान यह , ख़ुद में दृढ़ संकल्प।
तन मन धन सुख शान्ति का ,केवल योग विकल्प।।६।।
करें योग से मित्रता , शत्रुंजय संसार।
बने धीर नित साहसी , आत्मबली आचार।।७।।
रोग शोक संताप सब , मोह कपट से दूर।
स्वाभिमान सम्मान जग, बने नहीं मज़बूर।।८।।
योग नीति सह कर्म का , ध्यान राज सत्काम।
मुक्ति मार्ग संताप त्रय , जीवन धन्य सुनाम।।९।।
मानवता रक्षक सदा , साधन नैतिक राह।
करें नियोजित योग से , भौतिकता हर चाह।।१०।।
करें सुखद योगात्म नित , पाएँ निज सौभाग्य।
करें नियंत्रण चपल मन , अभ्यासी वैराग्य।।११।।
योगेश्वर सह पार्थ का , योगसूत्र है शक्ति।
योग राज हैं शिव स्वयं , पातंजलि अभिव्यक्ति।।१२।।
जीतें हम गोलोक को , योगबली पुरुषार्थ।
शील त्याग गुण कर्म से , हरिवंदन परमार्थ।।१३।।
कवि निकुंज चंचल मनसि , फँसा मोह जंजाल।
हेतु पाप मद शोक जग , बचें बनें खुशहाल।।१४।।
वर्धापन शुभकामना , विश्व भगाएँ रोग।
स्वागत विश्व योग दिवस , करें मिलें सब योग।।१५।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली
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