विषयः चित्राधारित
दिनांकः २०.०६.२०२०
दिवसः शनिवार
छन्दः मात्रिक( दोहा)
विधाःस्वैच्छिक
शीर्षकः कटा आम का पेड़
मानवीय संवेदना , मरी आज संसार ।
ठूठ बना यह पेड़ भी , परहित में फलदार।।१।।
भौतिक लिप्सा है बला , क्षत विक्षत वन वृक्ष।
व्यर्थ सभी बिन प्रकृति है, जीतो या अंतरिक्ष।।२।।
देखो धीरज भाव मन , कटा आम का पेड़।
जीवन हन्ता जो मनुज , फलता पड़ा अधेड़।।३।।
साहस पावन तरु कटा , माना नहीं है हार।
गज़ब हौंसला आपदा , सीख मनुज उपहार।।४।।
व्यथा कथा संत्रास की , सहता पेड़ रसाल।
लक्ष्य मात्र वश जिंदगी , मानव हो खुशहाल।।५।।
जन्म मरण संसार का , चलती जीवन रीति।
जो जीए परमार्थ में , बाँटे मधुरिम प्रीति।।६।।
पलभर की ये जिंदगी , पाओ यश कर दान।
सुख समझो सेवा वतन,खुशियाँ मुख मुस्कान।।७।।
डिप्रेशन जीवन्त बन , बाधक नित उत्कर्ष।
कठिनाई दुर्गम समझ , जीवन है संघर्ष।।८।।
पथ प्रदर्शक आपदा , देती साहस राह।
धीरज सह विश्वास मन , पूरण होती चाह।।९।।
नव पल्लव नव आश का , फल रसाल संदेश।
जीओ जबतक जिंदगी , परहित यश परिवेश।।१०।।
सुख दुख जीवन सरित् का,समझो तुम दो तीर।
जलकर पाता चमक को , स्वर्ण मौन गंभीर।।११।।
कवि निकुंज प्रमुदित हृदय,कटा पेड़ आचार।
बिना सिसक अरु रोष का, फल देता संसार।।१२।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
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