कवि सुनील कुमार गुप्ता

 


        *"तुमने"*


"मन की गहराईयों में साथी,


कुछ पल तो देखा होता-तुमने।


क्या-खोया क्या-पाया साथी,


अपने-बेगानों संग तुमने।।


अपनत्व की ही चाहत में साथी,


क्या-कुछ चाह था-जीवन में तुमने?


भटकता रहा मन हर पल साथी,


कब-जीवन में चैन पाया -तुमने?


मिले अपनत्व की छाया साथी,


पल पल यही तो चाह तुमने।


छोड़ चले जो संग साथ साथी,


क्यों-कहा हर पल साथी तुमने 


        *"तुमने"*


"मन की गहराईयों में साथी,


कुछ पल तो देखा होता-तुमने।


क्या-खोया क्या-पाया साथी,


अपने-बेगानों संग तुमने।।


अपनत्व की ही चाहत में साथी,


क्या-कुछ चाह था-जीवन में तुमने?


भटकता रहा मन हर पल साथी,


कब-जीवन में चैन पाया -तुमने?


मिले अपनत्व की छाया साथी,


पल पल यही तो चाह तुमने।


छोड़ चले जो संग साथ साथी,


क्यों-कहा हर पल साथी तुमने?"


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता


sunilgupta.abliq.in


ःःःःःःःःःःःःःःःःः 10-06-2020


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