*"तुमने"*
"मन की गहराईयों में साथी,
कुछ पल तो देखा होता-तुमने।
क्या-खोया क्या-पाया साथी,
अपने-बेगानों संग तुमने।।
अपनत्व की ही चाहत में साथी,
क्या-कुछ चाह था-जीवन में तुमने?
भटकता रहा मन हर पल साथी,
कब-जीवन में चैन पाया -तुमने?
मिले अपनत्व की छाया साथी,
पल पल यही तो चाह तुमने।
छोड़ चले जो संग साथ साथी,
क्यों-कहा हर पल साथी तुमने
*"तुमने"*
"मन की गहराईयों में साथी,
कुछ पल तो देखा होता-तुमने।
क्या-खोया क्या-पाया साथी,
अपने-बेगानों संग तुमने।।
अपनत्व की ही चाहत में साथी,
क्या-कुछ चाह था-जीवन में तुमने?
भटकता रहा मन हर पल साथी,
कब-जीवन में चैन पाया -तुमने?
मिले अपनत्व की छाया साथी,
पल पल यही तो चाह तुमने।
छोड़ चले जो संग साथ साथी,
क्यों-कहा हर पल साथी तुमने?"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 10-06-2020
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