कबिता-- नाराज़ नहीं हु तुमसे।
नाराज़ नहीं हु तुमसे,
। क्योंकि प्यार बहुत है तुमसे।
जब तुम अपने हाथ से मेरे उपर सहलाते हो,
तब ऐसा लगता है कि मा कि गोद और पिता साया मिल गया हो।
नाराज़ नहीं हु तुमसे ,
क्योंकि प्यार बहुत है तुमसे।
जब तुम्हारे सिने पर सर रखती हु,
तभी तो खुद को जानने का अवसर पाती हु।
एक वहीं पल है ,
जिसको मै अपने लिए जीती हु,
उसी से हिम्मत और शक्ति मिलती है।
तुम सायद इस बात से अनजान हो,
लेकिन सच कहुं तो
मैं बस वही पर अपने लिए जितनी हु।
अब तुम ही बताओ ,
नाराज़ कैसे हो सकती तुमसे।
कृष्णा देवी पाण्डे
नेपाल गंज, नेपाल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें