कुंo जीतेश कुमारी "शिवांगी "

आज का विषय *औरत* पर मेरा प्रयास


 


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*औरत* ...........


 


औरत की कहानी किससे बताये ।


सच पूछूँ तो किससे छिपाये ।।


क्या है जो सहती नही औरत ।


वो अलग बात है कि.....


कहती नही औरत ।।


 


*औरत* ....दर्द का वो समन्दर है ।


धधकता हुआ लावा जिसके अन्दर है ।।


दिन भर पिसती है कर कर के काम ।


फिर भी है वो गुमनाम ।।


कुछ करती भी हो?? 


तुमसे तो कुछ नही हो सकता !


तुम बस आराम फर्मा लो ।


महारानी जो हो इस घर की ।


सुनती है सहती है सबके ताने ।।


और फिर भी इज्जत देती है सबको ।।


पर बेहया बेशर्म के नाम से ।


औरत ही है वो जो है बदनाम ।।


 


*औरत*.....


 


वो मुफ्त का सामान है ।


जिसका किसीको लगता ना


कोई भी दाम है ।।


नौकरों से भी गया गुजरा 


होता व्यवहार है ।


फिर भी मेरा परिवार है ।।


कह कर समझ कर करती ।


वो सारे ही काम है काम है ।।


 


*औरत*.......


सच कहूँ तो औरत वो ......


सहन शक्ति का प्रति रूप है ।


जिसकी छाया बिना जीवन चिलचिलाती धूप है ।।


 


*औरत*.....


त्याग की वह मूर्ति है ।


जिसके बिना किसी भी त्याग की


होती ना पूर्ति है ।।


 


*औरत*.......


वह उदाहरण है बलिदान का ।


जो ना हो तो मान ना किसी दान का ।।


 


*औरत*......


प्रेम का धागा है जहाँ में ।


जो ना हो तो रब भी आधा है जहाँ में ।।


 


 


*औरत*...... ममता कि छाया है.....


*औरत*......... दर्द का मरहम है......


*औरत*.......... चहों दिशाऐं है.......


*औरत*....... धरती है पाताल है.....


*औरत*..... प्रकृति है आकार है......


*औरत*.... जड़ है चेतना है.......


*औरत*...... प्रतिकार है चित्तकार है.....


*औरत*........ दुर्गा है काली है.....


*औरत*....... चण्डी है गौरा है.......


*औरत*.... सूर्य है चन्द्रमा है........


*औरत*...... आदि और अन्त है......


*औरत*..... अनन्त है .................


 


स्वरचित.....


शिवांगी मिश्रा


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