आज का विषय *औरत* पर मेरा प्रयास
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*औरत* ...........
औरत की कहानी किससे बताये ।
सच पूछूँ तो किससे छिपाये ।।
क्या है जो सहती नही औरत ।
वो अलग बात है कि.....
कहती नही औरत ।।
*औरत* ....दर्द का वो समन्दर है ।
धधकता हुआ लावा जिसके अन्दर है ।।
दिन भर पिसती है कर कर के काम ।
फिर भी है वो गुमनाम ।।
कुछ करती भी हो??
तुमसे तो कुछ नही हो सकता !
तुम बस आराम फर्मा लो ।
महारानी जो हो इस घर की ।
सुनती है सहती है सबके ताने ।।
और फिर भी इज्जत देती है सबको ।।
पर बेहया बेशर्म के नाम से ।
औरत ही है वो जो है बदनाम ।।
*औरत*.....
वो मुफ्त का सामान है ।
जिसका किसीको लगता ना
कोई भी दाम है ।।
नौकरों से भी गया गुजरा
होता व्यवहार है ।
फिर भी मेरा परिवार है ।।
कह कर समझ कर करती ।
वो सारे ही काम है काम है ।।
*औरत*.......
सच कहूँ तो औरत वो ......
सहन शक्ति का प्रति रूप है ।
जिसकी छाया बिना जीवन चिलचिलाती धूप है ।।
*औरत*.....
त्याग की वह मूर्ति है ।
जिसके बिना किसी भी त्याग की
होती ना पूर्ति है ।।
*औरत*.......
वह उदाहरण है बलिदान का ।
जो ना हो तो मान ना किसी दान का ।।
*औरत*......
प्रेम का धागा है जहाँ में ।
जो ना हो तो रब भी आधा है जहाँ में ।।
*औरत*...... ममता कि छाया है.....
*औरत*......... दर्द का मरहम है......
*औरत*.......... चहों दिशाऐं है.......
*औरत*....... धरती है पाताल है.....
*औरत*..... प्रकृति है आकार है......
*औरत*.... जड़ है चेतना है.......
*औरत*...... प्रतिकार है चित्तकार है.....
*औरत*........ दुर्गा है काली है.....
*औरत*....... चण्डी है गौरा है.......
*औरत*.... सूर्य है चन्द्रमा है........
*औरत*...... आदि और अन्त है......
*औरत*..... अनन्त है .................
स्वरचित.....
शिवांगी मिश्रा
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