मधु शंख धर स्वतंत्र प्रयाग राज

दोहे 


*दिनांक... *04.06.2020*


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क्यूँ भूला मानव यहाँ, प्रेम रूप रस छंद।


आज समय जो भी मिला, ले उसका आनंद।


 


शोभित होते पुष्प का, भ्रमर साथ ही प्रेम,


प्रेम भूल कर वो उड़े, पा करके मकरंद।।


 


कोयल मधु आवाज में, गाए मधुमय गीत,


प्रकृति मनोहर रूप हो,रहे पवन गति मंद।।


 


भाव समर्पित देखकर, राष्ट्र करे सम्मान।


पृथ्वी राज से छल करे, सदा मूल जयचंद।।


 


स्वच्छ व्यवस्थित देश में, भारत मानक रूप।


तन से मन की शुद्धता,मधु धरा नहीं गंद।।


*मधु शंखधर स्वतंत्र*


*प्रयागराज*


*9305405607*


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