*"कर्म में भल भाव भरो"*
(कुण्डलिया छंद)
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★दमके सु-भाव-दामिनी, मानव-मन-घन बीच।
पावनता ले साथ में, कमल खिले ज्यों कीच।।
कमल खिले ज्यों कीच, कर्म में भल भाव भरो।
करके कुछ कल्याण, यथा संभव ताप हरो।।
कह नायक करजोरि, भाग्य का सूरज चमके।
अनल-दहे जब स्वर्ण, कांति कंचन की दमके।।
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*"जाना है जग छोड़कर"*
(कुण्डलिया छंद)
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*जाना है जब छोड़कर, जग के सारे भोग।
तो फिर क्यों निज स्वार्थ का, पाल रखा है रोग??
पाल रखा है रोग, धर्म शुभ नित्य निभाना।
करना नहीं अधर्म, पड़े न कभी पछताना।।
कह नायक करजोरि, मनुजता को न भुलाना।
पल-संयोग-कुयोग, लगा है आना-जाना।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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