बंदिशे खत्म हो रही है जिंदगी कि रौनक का एहसास हो रहा है।
तेजी से भागने कि परस्पर प्रतियोगिता में मानव उदंड उछ्रींखल हो रहा है ।।
जीवन का सयंम ,संकल्प छोड़ रहा है ।
पहले भी एक बार ऐसी ही गलती कि सजा भुगत रहा हैं ।।
छ सौ साल गुलामी के बाद भारत आजाद हुआ ।
भारत का जन जन गुलामी कि हद हैसियत कि सीमा सिकंचो से बाहर निकला।।
भूल चुका था मानव मर्यादा राष्ट्र प्रेम और धरती माता का महत्व।
जैसे पिजड़े में बंद पंक्षी भूल जाता है उड़ाना ,अपना आकाश नीला ।।
नतीजा आजादी के साथ ही देश बट गया ।
लाखो लोग जो एक दूसरे के पूरक थे एक दूसरे के हाथों विद्वेष कि भेंट चढ़ गए इंसान जानवर हो चला।
धीरे राष्ट्र बीते हादसों को भुलाने कि कोशिश कर रहा था ।
तमाम बंदिशों कि गुलामी से आजाद हुए मुल्क का आवाम।
मुल्क को बना दिया जंगल और कायम कर दिया जंगल राज।
मानव समाज में जानवर के पर्याय बाहुबली ।
खून इनके लिये पानी से सस्ता इंसान मुर्गे बकरे कि तरह करता हलाल ।।
प्रशासन के लिया जंजाल अन्याय अत्याचार भय भ्रष्टाचार के आधार ।
पहले छुपे रुस्तम थे अब दीखते सरेआम ।
गुलामी से आजाद हुए ए इंसान देश सम्माज को बना दिया जंगल।।
बना दिया खुद को जंगल का भयानक जानवर आम जनता हो बन्दर ,हिरन ,बकरी ,भैस ,गाय।
यही है भारत के छ सौ साल गुलामी से आज़ाद हुआ समाज।।
पहले गैरों कि गुलामी के जूते लात अब अपने ही लोगो कि गुलामी का तिरस्कार भय अपमान।।
कुछ दिनों के लिये कुछ प्रतिबंधों के बीच रहा राष्ट्र का जन समुदाय।
भ्रम हुआ क्या फिर हुए गुलाम।
प्रतिबन्ध हट रहे है जन जन के चेहरे पर आजाद जिंदगी का तराना मुस्कान ।।
अपनी ही जिंदगी को बेफिक्र जी रहा इंसान जानते खतरों से अनजान।
समय से पहले खतरों के हवाले खुद को कर रहा है ।
उसका सयंम संकल्प टूट रहा है।
गुलामी अच्छी बात नहीं उछ्रींखलता कि आजादी सदा खतरनाक अभिशाप।
अनुशासन गुलामी नहीं, अनुसाहित जन का समाज राष्ट्र कभी गुलाम नहीं।।
जीवन में उत्साह ,विकास के लिये सयंम ,नियम ,अनुशासन,संकल्प जरुरी।
जीवन का निश्चय निश्चित आधार अनिवार्य।।
मुग़ल, ब्रिटिश ,कोरोना का ना गुलाम बने ।
गुलामी में इंशा असय वेदना को सहता धीरे धीरे मरता जाता ।
अनुशासन, सयंम, संकल्प आजादी के आदि ,मध्य ,अंत अंनंत।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
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