नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

भूख दुनियां के क्या -क्या 


रंग ,रूप,राह दिखती ।


कभी रुलाती कभी हंसाती 


भूख रोटी कि जाने क्या क्या 


दिन दिखती।।


भूख इंसान को जाने कौन से दर भटकाती।


भूख इंसान को ताकत का मशीहा ,कमजोर बनती।


भूख जिंदगी कि मंजिल मकसद बताती।।


भूख शौख भी ,भूख जिंदगी ,


भूख भय ,दहसत ,कहर, कोफ़्त 


बन जाती।


शोहरत कि भूख इंसान को देवता,


शैतान बनती ।।


दौलत कि भूख इंसान को चोर,


बेईमान बनाती।


भूख रोटी कि जिंदगी कि सांसो


धड़कन के लिये जरुरी।


जूनून भी भूख चाहतो कि


मोहब्बत ,दुनियां, संसार हासिल का दीवाना गुरुरि।।


परवानो कि तड़फ इश्क के अश्क रुलाती हंसती।


आरजू कि मंजिल कि भूख 


नज़रों के इंसान को अँधा बनती।।


सरहदों पे दिन रात मरता है 


जवान वतन पे मर मिटने का 


जज्बा भूख जागती।


मर जाता वतन पे ,कफ़न तिरंगे का ओढ़ भूख जवाँ के जज्बे को


अमर शहीद बनती।।


भूख आग है ,जिसकी लपटों में दुनियां जल जाती।


भूख भयंकर क्रांति कि ज्वाला,


भूख शांति का पैगाम सुनाती।।


भूख एक मशाल है दुनियां में 


मिशाल बनती ।


पेट कि आग भूख है


ख्वाहिसों ,चाहतो का हद जुनूं 


भूख है।।


भूख क्रोध, काल जागती 


भूख भ्रम का भयंकर बनाती 


भूख करुणा, दया का पात्र 


बनती।। छुधा से भूख कि शुरुआत


भूख अग्नि है ,भूख चाहत जूनून है।


भूख मकसद कि महिमा का ज्वलित ,प्रज्वलित प्रवाह है ।।


भूख हुस्न ,इश्क कि इबादत ,  


भूख जज्बात ,भूख कर्म है ,भूख धर्म है ,भूख काम ,भूख आम है,


प्राणी प्राण है।।


भूख गम ,ख़ुशी ,आसु ,मुस्कान 


छुधा कि भूख मिटाने में प्राण प्राणी परेशान है।


छुधा कि भूख शांत होते ही 


तमाम भूखो कि आग कि लपटों में झुलसता प्राणी प्राण है।।


भूख कि रोटी या मकसद कि भूख दोनों ही में प्राणी के प्राण है।


रोटी कि भूख जिंदगी ,मकसद कि भूख जूनून ,पागलपन ,दीवानापन जिंदगी की पहचान है।।


दोनों ही जिंदगी के लिये जरुरी


दोनों से ही मिलती प्राणी कि जिंदगी प्राण पहचान ।


दोनों में ही जिंदगी प्राणी प्राण की


आदि ,मध्य ,अनंत यात्रा का महाप्रयाण है।। 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


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