नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

----परिवार का समाज राष्ट्र---      


 


मानव का रिश्तों से नाता ,रिश्तों का परिवार से नाता ।  


   


परिवारों का सम्माज से नाता परम्परा रीती रिवाज नाता ।।


 


 


संस्कृति, संस्कार , परिवार ,समाज का पहचान से नाता।     


                                       मानव से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट् का नाता।।                               


 


 


मानव का परिवार ,समाज ,राष्ट्र कि संस्कृति सम्ब्रिधि का राष्ट्र अभिमान से नाता।।                 


 


एक -एक मानव कि ताकत का संगठित ,सक्तिशाली परिवार ।।


  


 


मानव, मानवता के परिवारों का सम्ब्रिध, सबल ,समाज ।  


 


सुदृढ़ समाज से मजबूत, महत्व्पूर्ण ,सक्षम राष्ट्र।।


 


रिश्तों में समरसता ,विश्वास ,प्रेम सौहार्द सामजस्य परिवारों का आधार ।     


 


     


मर्यादा ,मूल्यों के मानव सम्बन्धों का बनता परिवार।।              


 


संबंधो में द्वेष, दम्भ ,घृणा का नहीं स्थान। , द्वेष ,दम्भ ,घृणा परिवारों के विघटन के हथियार।।             


 


छमाँ ,दया ,करुणा ,प्रेम ,सेवा का संचार संबाद सत्कार।    


 


मानव -मानवता के रिश्तों के परिवारों में प्रेम परस्पर सार्थक व्यवहार।                            


 


रिश्तों कि परिभाषा बैभव, विनम्रता का आचरण परस्पर विश्वास का रिश्ता परिवार।।    


 


माता ,पिता ,भाई, बहन चाचा चाची दादा दादी अनंत आदि रिश्तों का संसार परिवार।          


 


एक दूजे का सम्मान ,वेदना, संवेदना का एहसास परिवारो की बुनियाद।।                         


 


आज्ञा कारी सूत श्रवण, लक्षमण भाई बहन सुभद्रा।             


 


कच्चे धागों के रिश्तों का अदभूत का परिवार राष्ट्र अभिमान।।          


 


संतानो से दुखी माँ बाप भाई -भाई का शत्रु । विध्वंस ,विघटन, विवाद विपत्ति का पल ,प्रहर ,दिन ,रात का परिवार।।                         


 


विघटन ,विवाद ,बंटवारा रिश्तों का बिकृत स्वरूप् का साथ। बर्बादी ,टूटता ,बिखरता ,सिमटतासमाज परिवार।।                  


 


बिखरे ,बेबस रिश्तों ,परिवारो का लाचार ,मजबूर ,समाज। लाचार, मजबूर , परिवार समाज का गंगा ,बहरा अक्षम राष्ट्र ।।     


 


मजबूत इरादों का सक्षम राष्ट्र, समरस रिश्तों के परिवार समाज का राष्ट्। रिश्ते में एक दूजे से आस्था का वास्ता का परिवार, समाज,राष्ट्र।।                  


 


अहंकार ,अभिमान, मिथ्या में भागती दुनिया का त्याग।   


 


राष्ट्र धरोहर का धन्य पहचान का


 आत्मसाथ परिवार समाज राष्ट्र।।


 


बुनियादी परम्परा के परिवार समरस, समता मूलक समाज का राष्ट्र ।                              


 


कल्पना का सत्य ,सार्थक परिवार, समाज का राष्ट्र।                        


 


मजबूत इरादों दूर ,दृष्टि,साहस शक्ति का सक्षम परिवार, समाज राष्ट्र ।।                            


 


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...