नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

धर्म निरपेक्षता ढकोसला


 


 


धर्म ,समाज ,राष्ट्र धरोहर


माँ ,जन्म ,जन्म भूमि की 


पहचान।।


धर्म ,धन्य मानवता का


अभिमान ।


धर्म ,संस्कृति ,संस्कार 


नहीं सिखाता प्राणी


प्राण में भेद भाव।।


हिंसा ,घृणा ,विद्वेष धर्म नहीं


धर्म मार्ग है प्रेम ,शांति का


संदेस।।


धर्म नहीं करता मानव 


मानव में भेद।


अन्याय ,अत्याचार का प्रतिकार


सद कर्मो का सत्य ,सत्यार्थ


धर्म ,करुणा ,छमाँ मानवता


की मर्यादा मूल्य।।


लोकतंत्र मत बहुमत का मेल


लोक तंत्र में जाती धर्म के 


वर्ग बेमेल।।


लोकतंत्र सत्ता ,शासन का


मार्ग कभी तोड़ कर ,कभी


जोड़ कर मत बहुमत नित्य


निरंतर सत्ता शक्ति के संतुलन


अनेक।।


लोक तंत्र जनता का, जनता द्वारा,


जनता के लिये 


अक्सर भोली भाली जनता


अपने सपने को खुद


भवों के प्रवाह में दाँव लगाती


कभी हारती कभी जीतती


कभी हराती कभी खुद


हार जाती ।।


धर्म धुरी है मानवता कि जिसके इर्द गिर्द


मानव घूमता आशाओ के


विश्वाश में ,आस्था के अस्तित्व


में ,विराटता के बैभव में,


विचलित हो जाता ,जब मानव


धर्म मार्ग उसे तब बतलाता।।


लोकतंत्र भी मानवता के मूल्यों


का रखवाला 


मत बहुमत के चक्कर में 


बांटता बटाता और बँट जाता


लोकतंत्र सिद्धांत मत बहुमत


पर आधारित ।।


धर्म ,अक्षुण ,अक्षय युग समाज


का निर्माणी निर्णय कारी।


लोक तंत्र में बहुमत निर्णय


परिवर्तन का पथ प्रवाह


धर्म में कर्म ,ज्ञान के वेद्,


पुराण, कुरान जीवन मूल्य


आधार ।।


धर्म कि परिभाषा कि उलटी


व्याख्या घृणा का क्रूर ,


क्रूरतम, उग्र ,उग्रता ,उग्रवाद


लोक तंत्र में छद्म खद्दर धारी


जनता के प्रतिनिधि महात्मा


कि आत्मा विध्वंसक ,विघटन


कारी मानवता में घृणा के 


संचारी।।


धर्म निरपेक्ष नहीं मानव मन 


मस्तिष्क कि आस्था 


के मूल्यों कि परम शक्ति भगवान,


खुदा ,अल्ला ,बुद्ध ,जीजस , नानक भक्ति की शक्ति।


लोकतंत्र सिद्धान्तों के सापेक्ष मति ,सहमति कि


संयुक्त ताकत राज्य प्रशासन


की निति ,नियति राज्य निति राजनीती 


निरपेक्ष नहीं ,जब भगवान,


खुदा ,जीजस ,अल्ला भक्ति


के सापेक्ष।।


लोकतंत्र निरपेक्ष कैसे


लोक तंत्र बहुमत का प्रति


प्रतिनिधि का सापेक्ष।।


निरपेक्ष नहीं पैदा होता मानव


पैदा होता धर्म ,रिश्तों ,नातो के


समाज सापेक्ष में


कैसे हो सकता निरपेक्ष ।।


धर्मनिपेक्षता का राग ढोंग,


छद्म ,छलावा सबसे ज्यादा


धर्मांध धर्म निरपेक्षता कि


राग अलापता । 


धर्म निरपेक्षता खोखले


मर्यादाओ का अँधेरा अन्धकार


दिखता ।।


जब इंसान कि पहचान माँ ,बाप,


मातृभूमि ,समाज ,धर्म ,राष्ट्र 


जो मानव ,मानवता के रिश्तों


में रचता बसता समरसता


के समता मूलक राष्ट्र कि 


बुनियाद।।


शासन प्रशासन लोक तंत्र हो


राज तंत्र हो जो भी हो कि


सांसे धड़कन प्राण।।


हर राष्ट्र कि मौलिक चाहत


एक सूत्र में बंधा रहे राष्ट्र 


समाज ,धर्म का भी चिंतन


सिद्धान्त।।


दूरदृष्टि ,मजबूत इरादे ,नेक नियति


निष्ठा ,ईमानदारी ,आस्था और


विश्वास, धर्म और लोकतंत्र कि आत्मा आवाज़।।


 


धर्मनिरपेक्षता फरेब ,धोखा ,मौका,


मतलब परस्ती का समाज देश


के बुनियादों का दीमक जाल।।


देश समाज के खस्ता हाल


का जज्बा जज्बात जिमेदार।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


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