नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर 

विश्व पर्यावरण दिवस ----पर्यावरण प्रदूषण प्राणी प्राण कि आफत ब्रह्ममाण्ड के दुश्मन।


 


 


नदियां ,झरने ,तालाब ,ताल तलइया सुख गए धरती बंजर हो रही रेगिस्तान।।                    


 


श्रोत जल का चला गया पातळ जल ही जीवन का जीवन दर्शन का सरेआम मजाक ।            


 


युद्ध होगा अब जल कि खातिर जल बिन तड़फ तड़फ कर निकलेगा प्राणी काप्राण।।      


 


जल जो अब भी है बचा हुआ है प्राणी के कचड़े से हुआ कबाड़।


 


ऋतुओं ने चाल बदल दी मौसम का बदल गया मिज़ाज ।।       


 


सर्दी में गर्मी ,गर्मी में सर्दी ,वर्षा मर्जी कि मालिक जब चाहे आ जाय ।।                          


 


प्रकिति के मित्र धरोहर प्राणी विलुप्त प्रायः दादा ,दादी कि कहानियो के ही पात्र पर्याय।।


 


बन ,उपवन ही जीवन पेड़ पौधे कट रहे चमन धरती के हो रहे बिरान ।।                            


 


हवा में घुली जहर साँसों में जहर आफत में है प्राणी प्राण ।      


 


ध्वनि प्रदुषण ,धुँआ प्रदूषण साँसत में है जान।          


 


पर्यावरण ,प्रदुषण बन गया बिभीषन नित्य ,प्रतिदिन निगल रहा शैने ,शैने ब्रह्माण्ड प्राणी का ज्ञान ,विज्ञानं।।


 


प्रतिदिन विश्व में कहीं न कहीं अवनि डोलती भय भूकंप का भयावह साम्राज्य।     


 


सुनामी ,तूफ़ान कि मार झेलता युग संसार।।                      


 


प्राणी, प्राण प्रकृति का संतुलन असंतुलित धरती का बढ़ रहा तापमान ।                     


 


ग्लेशियर पिघलते सागर तल कि ऊंचाई बढ़ती अँधेरा होता आकाश ।।


 


अँधा धुंध विकास कि होड़ में अँधा प्राणी जीवन के मित्र नदारत पर्वत हुए चट्टान ।                  


 


समय अब भी कुछ बाकी कुछ तो सोचो प्राणी प्रकृति का करो पुनर्निमाण।।                    


 


प्रदूषण के खर दूषण दानव को ना करने दो विनास ।           


 


प्रकृति कि मर्यादा के राम बनो, मधुबन के मधुसूदन, कालीदह का नटवर नागर कि मुरली कि बनो तान।।


 


जल सरक्षण ,बन सरक्षण का अलख का हो शंकनाद।।               


 


प्रदूषण के दानव से संरक्षित संवर्धित का हो संसार ।।


 


बृक्ष भी हो जैसे संतान, जल कि अविरल ,निर्मल धरा का बहे प्रवाह।


 


ऋतुएँ ,मौसम संतुलित हरियाली खुशहाली का ब्रह्माण्ड।।


 


       नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर 


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...