नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

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       ----रिश्ते ---              


पैदा होता ही इंसान रिश्तों के साथ । नौ माह कोख में रखती तमाम दुःख कष्टों को सहती माँ ।।     


 


अपने औलाद कि खातिर असह वेदना भी जीवन का वरदान मानती खुद चाहे ना पसंद हो संतान की चाहत में सब कुछ करती जीती मारती माँ।।


                              


 


स्नेह सरोवर की निर्मल निर्झर गंगा कि धारा । ममता, ममत्व, वात्सल्य मानव का सृष्टी का का रिश्ता माँ ।।


 


ख़ाबों और खयालो में अपने चाहत अरमानो की जीत, चाहत।


कुल ,खानदान का रौशन चिराग हो माँ का लाडला बेटा।।       


 


आन ,मान, सम्मान का का सत्य सत्यार्थ प्रकाश चिराग माँ का बेटा।                               


साहस, शक्ति ,ज्ञान, योग्यता का अभिमान हो माँ काबेटा दुनियां में माँ बाप खानदान का रोशन नाम करे ,समाज राष्ट्र का नव निर्माण करे ,माँ का बेटा।।


 


काल ,समय ,भाग्य ,भगवान ,कर्म धर्म ,कर्तव्य ,दायित्व बोध का अहंकार बने माँ का बेटा।।    


 


मजबूत इरादों कि बाहों के झूले में झुलाता । अपने सिंघासन जैसे कंधे पर शान से दुनिया को अहंकार से बतलाता देखो ये दुनियां वालों मेरे कंधे पर मेरा नाज़ ।


 


चौथेपन कि मेरी नज़रे लाठी कन्धा फौलाद मेरी औलाद।।


 


मानव का दुनियां में पिता पुत्र का रिश्ता उम्मीदों के आसमान का रिश्ता और फरिश्ता।।               


 


माँ बेटे पिता पुत्र का दुनिया, समाज ,परिवार का बुनियादी रिश्ता।।


 


बहना जीवन का गहना रिश्तों के परिवार समाज खुशियों कि रीत प्रीति का बचपन से जीवन का रिश्ता।।


 


कच्चे धागे का बंधन संग ,साथ बहना चाहे बड़ी हो या छोटी । प्यारी ,लाड़ली ,दुलारी परिवार का प्यार बहना ,दीदी जीवन की सच्चाई का रिश्ता लक्ष्मी ,लाज परिवरिस का प्यार।।           


 


लड़ाई झगड़े कट्टी, मिल्ली बचपन कि शरारत रिश्तो के कुनबे परिवार की खुशियाँ चमन बहार का रिश्ता।।                           


 


हर राखी पर उपहार मांगती दुआओं भैया की झोली भरती। भैया दूज कि मर्यादाओं कि अपनी अस्मत हस्ती कि हिफाजत कि हिम्मत ताकत का आशीर्बाद भी देती का रिश्ता बहना दीदी।।          


 


बचपन की अठखेली आँख मिचौली घड़ी पल प्रहर दिन महीनो साल । वर्तमान से निकल अपने अरमानो के साजन के घर चल देती ।।


 


आँखों में विरह के आंसू दे जाती नन्ही सी पारी नाज़ों की काली परिवार कि चर्चा यादों का दर्पण हो जाती।।


 


भाई से भाई का रिश्ता परस्पर प्रेम प्रधिस्पर्धा साथ- साथ खेलते पढ़ते लिखते बापू के अरमानों के जाबाज परिन्दे खुली नज़रो के खाब बापू के अरमानो के अवनि आकाश। स्वछंद अनरमानो के पंखों के परवाज़ भाई -भाई परस्पर परिवार की साख सम्मान का विश्वास रिश्ता ।।


 


मानव का रिस्तो से नाता ,रिश्ता ही परिवार बनाता परिवारों से सम्माज का नाता समाज का परम्परा रीती,रीवाज निति से रिश्ता नाता ।   


संस्कृति, संस्कार का समाज की पहचान से नाता मानव से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट् का रिश्ता नाता।। मानव, परिवार ,समाज, राष्ट्र कि संस्कृति समबृद्धि पहचान बताता।                          


 


हर एक मानव कि ताकत से संगठित सक्तिशाली परिवार समाज संगठित सक्तिशाली परिवारों के का संबल समाज से मजबूत, महत्व्पूर्ण ,सक्षम राष्ट्र का नाता रिश्ता।।


 


रिश्तों में समरसता ,विश्वास, प्रेम प्रतिष्ठा परिवार का आधार।


    


परस्पर ईमान ,ईमानदार सम्बन्धों के मानव मानवता से ही परिवार का रिश्ता नाता।।                


 


संबंधो में द्वेष ,दम्भ ,घृणा का कोई स्थान नहीं ,द्वेष, दम्भ ,घृणा परिवारों के विघटन के हथियारों से रिश्ता नाता ।                  


 


 


छमा, दया ,करुणा ,प्रेम, सेवा, सत्कार मानव, मानवता के रिश्तों परिवार में प्यार,सम्मान, परम्परा का सार्थक व्यवहार जीवन मूल्यों का रिश्ता नाता।।


 


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


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