अनुबन्ध नहीं संबंधो में सम्बन्ध शास्वत अंतर मन कि एकाकी का बंधन ।
संबंधो के आयाम बहुत नाम बहुत संबंधो में होता नहीं विकार।।
संबंधो कि अपनी मर्यादा मान
संबंधो कि अपनी संस्कृति संस्कार।
संबंधो के सतत सिद्धान्त शत्रुता भी संबंधो कि बिशिष्टता का परिणाम ।।
परस्पर संबंधो में स्वार्थ का नहीं कोई स्थान।
निर्धारण संबंधो का जन्म के साथ बिसरते ,बिसराते जाते ।
ऐसे भी सम्बन्ध कुछ जीवन के साथ साथ जीवन के बाद।
संबंधो कि पृष्ठ भूमि है त्याग
बेटी बचपन बाबुल के संबंधो का करती त्याग ।।
अपरिचित से नव संबंधो का करती सत्कार संबंधो का यही रीती रिवाज।
अग्नि के समक्ष के फेरे सात कोई अनुबंध नही ।
ह्रदय भाव के संकल्पों का सम्बन्ध का बंधन मात्र।।
संबंधो में सहमति ,प्रेम ,सम्मान आधार ।
विलय व्यक्तित्वों का एकीकृत हो जाना मित्रता कि परिपक्वता पवित्रता संबंधो आदि मध्य अंत।।
अवसान नहीं संबंधो का नित्य निरंतर के जीवन का।
अविरल, निश्चल ,प्रवाह संबंधो का पूर्ण विराम नहीं।।
चाहे अनचाहे बंधन में बांध जाना जीना मरना मिट जाना ।
संबंधो में अनुबंध नहीं भावों कि भाव भावना कि अनुभूति जाग्रति का सूत्रधार का तन बाना।।
प्रेयसी ,प्रियवर ,प्रियतम माता, पिता ,भाई ,बहन संबंधो केजीवन दर्शन है ।
मन के मूल्यों का अनमोल मित्र युग संसार में अभिमान अतिउत्तम सर्वोत्तम संबंधो का मूल्य मूल्यवान।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
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