विचलित हो जाती जब
बहती धारा अर्थ बदल
जाते दुनियां में बन जाती नयी
परभाषा कि धारा।।
अविराम निरंतर बहती
धारा भटक जाती जब
मकसद से विचलित
बैचन बेसहारा आसरा किनारा
खोजती बिचलित धारा।।
कभी कभी विचलित
धारा भी बन जाती
आशाओं, विश्वास कि धारा
विचलित धारा।।
अलग, बिलग का अस्तित्व
असमंजस भाग्य ,भगवान सहारा
कर्म कर्तव्य कि चुनौती विचलित
धारा।।
नित्य ,निरंतर बहती धारा को
मोड़ता नया काल, समय
पराकम ,पुरुषार्थ
नई शुरुआत कि युग धारा
विचलित धारा।।
विचलित धारा विलग अस्तित्व
अस्तमत कि चाहत धारा
कभी कभी नई चेतना अक्सर
काली छाया विचलित धारा।।
भय ,भ्रम ,संसय से
विलग होती विचलित धरा
प्रकृति ,प्रबृति में नकारात्मक
विचलित धारा।।
प्रेम प्रसंग के अविरल
प्रवाह में वियोग दुःख है
विचलित धारा ।।
जीवन के मतलब में परम्परा संस्कृति ,संस्कार का विमुख
नए सिद्धान्त का विज्ञानं विचलित धारा।।
यादा कदा विचलित धारा
चैतन्य ,जागृति अवनि आकाश कि अवधारणा विचलित धारा।।
अविरल ,निरंतर धारा
दुनियां में ,परम्परा का मान गान
का शौर्य सूर्य, नव सूर्योदय पराक्रम कि कदाचित विचलित धारा।।
धाराओ का विचलित होना
साहस, शक्ति ,सोच ,ज्ञान कि
ताकत मोल ,मूल्य ,विचलित धारा।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
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