निशा"अतुल्य"

बरखा बहार आई


16.6.2020


मनहरण घनाक्षरी 


 


बरखा बहार आई 


खुशियाँ हजार लाई


सब रंग डूब कर 


बूंदों में नहाइए ।


 


पेड़ झूम झूम रहे


वायु में सुगंध बहे 


तपती धरा की तुम


प्यास तो बुझाइए।


 


अमवा की डार झूमी


कोयल की मीठी बोली


पपीहे ने राग गाया


सबको सुनाइए ।


 


बरखा की नन्ही बूंदे


टिप टिप गीत गाएं


लगती बड़ी ये भली 


मन झूम जाइए ।


 


स्वरचित 


निशा"अतुल्य"


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