दोहे पर मेरा प्रयास
😊🙏🏻
दिन मेरा बीते नही, ना ही बीते रात
धरा ग्रीष्म में तप रही,कब होगी बरसात ।
व्याकुल पंछी जीव हैं,ढूंढे वृक्ष की छाँव
बादल घिर जो आ गये,ठौर मिलेगी गाँव।
बरखा की बूंदे गिरी, नाचा मन का मोर
पावस ऋतु जो आ गई,बादल हैं घनघोर।
नदियां पानी से भरी, भर गए ताल तलाब
टप टप गिरती बूंद भी,गाती रहें मल्हार।
ऋतु सावन की है खड़ी,बाट निहारूँ आज
पिया मिलन की आस है, घिर आया मधुमास ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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