नूतन सिन्हा

पिता


न होती लोरियाँ पिता के पास


         वो होते है


मोटे तने और गहरी जड़ो वाला


एक विशाल वृक्ष और मॉ होती है


उस वृक्ष की छाया,जिसके नीचे बच्चे बनाते बिगाड्ते अपने घरौंदे 


 


रहता है पिता के पास


दो ऊँचे और मजबुत कंधे 


जिन पर चढ़ कर बच्चे देखते


सपने आसमान छूने की


 


रहता है पिता के पास


एक चौड़ा और गहरा सीना


रखता जिसमें जज़्बा 


रखता अपने सारे दुख


चेहरे पर जाड़े की धूप की तरह


फैली चिर मुस्कान के साथ


 


उसके दो मजबुत हाथ


छेनी और हथौड़ी की तरह


तराशते रहते है सपने दिन रात


सिर्फ़ और सिर्फ़ बच्चों के लिये


अपनी जरुरतो और अपने सपनों


को कर देता मुल्तवी 


 


पिता भूत,वर्तमान और भविष्य 


जीता है तीनों को साथ लेके


भूत की स्मृतियॉ


वर्तमान का संघर्ष 


और बच्चों में भविष्य 


 


पिता की उँगली पकड़ कर


चलना सिखते बच्चे 


पर भूल जाते एक दिन


इन रिश्तों की संवेदना


और तय किये गये


सड़क,पुल बीहड़ रास्तों का


उँगली पकड़ कर कठिन सफ़र


 


बाँहें डाल कर


जब झूलते बच्चे 


और भरते किलकारियाँ 


पूरी कायनात सिमट आती है 


उसकी बाँहों में


इसी सुख पर वो


कर देता क़ुर्बान अपनी पूरी जिदंगी


 


वो बहाता अपना पसीना


तरह तरह का काम करके


      चाहे हो वह


ढोता बोझा या फिर फ़ैक्टरी 


दफ़्तर में करता वो काम


या हो फिर अफ़सर


बनता है बुनियाद का पत्थर 


जिस पर तामीर होते है


बच्चों के सपने


 


फिर भी पिता के पास


न होती बच्चों को बहलाने और


सुलाने के लिये लोरियाँ 


             नूतन सिन्हा


            21.06.2020


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