पितृ दिवस आशुकवि नीरज अवस्थी

आज पितृ दिवस के अवसर पर सभी पिताओ को समर्पित कुछ पंक्तियां--


 


धूप शीत बरसात झेल कर जिसने मुझको बड़ा किया।


मुझको दिया सहारा पाला निज पैरों पर खड़ा किया।


ह्र्दय पटल से पूज्य पिता की चरण वन्दना करता हूँ,


जिसने घोर गरीबी में मुझको ऍम ए तक पढ़ा दिया।


 


खेती और किसानी में जिसने जीवन को गला दिया।


भूखे प्यासे रहकर मुझको भोजन पानी खिला दिया।


अपने जीते जी नीरज को रचना सी पत्नी देकर,


मेरी खुशियों की खातिर जिसने सुख सुविधा भुला दिया।


 


जितना प्यार दिया था तुमने तब जाना जब आप गये।


कमी पिता की क्या होती है,तब जाना जब आप गये।


व्याह योग्य थी छोटी बहना जिम्मेदारी मुझ पर थी,


कैसे व्याह रचाये होंगे तब जाना जब आप गये।।


 


रिश्ते दारी खेती बाड़ी मेहमानों की आव भगत।


खटिया बिस्तर बर्तन कपड़ा कुर्सी मेजे और तखत।


घर के काम बजार व्यवस्था बैना भी व्यवहार किया,


कितना दर्द सहा था तुमने, तब जाना जब आप गये।।


मो.9919256950


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...