प्रज्ञा जैमिनी 

पर्यावरण दिवस पर आधारित


     प्रकृति 


 


प्रकृति ने ली जब अंगड़ाई


वसुधा नववधू- सी शरमाई


सूरज की सुनहरी किरण ने


उसकी सुंदर माँग सजाई


 


सजाई फूलों से अपनी वेणी


रंग-बिरंगी हरियाली साड़ी पहनी 


सदाचार, स्नेह के गहनो से विभूषित 


दिखती समर्पित कोमलांगी ज़हनी 


 


वन-उपवन,प्राणी सभी हुए 


पुलकित देख उसका श्रृंगार


कलह द्वेष के पाषाण हृदय पर


किया उसने प्रेम से प्रहार 


 


मधुमास में शुष्क मन में 


लगता प्रेम संगीत बहने


महकी-महकी रातरानी की कहानी 


प्रेम धुन लगते हैं सभी कहने 


 


वसंत ऋतु का रूप अनूप देख 


चहचहाए पक्षी- पशु पेड़ों पर झूल


सुन कोयल-सी मीठी बोली 


निराशा, शत्रुता,विपदाएँ गए सब भूल


 


वसुधा की हरितिमा से ही छाई


सबके हृदयों पर मधुर मुस्कान 


हरित वृक्ष काटकर मत करो तुम 


इस सृष्टि का अवसान


प्रज्ञा जैमिनी 


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