प्रखर दीक्षित

राम कै बाट तकै शबरी नित राह कै धूर औ' कंट्रोल बुहारै।


अईंहै कबै मेरे राम सिया इत कुटिया के झरोखे पंथ निहारै।।


फल फूल रुचिर पकवान नवल,मधुपर्क सो माँ आयु संभारै।


अब आवहु लला अवधेश घरै, उपवास करै अरू राम निहोरै।।


 


सिय राम अबेर करी , अंखियाँ थाकी तन हार गयो।


मतंग मुनी आश्वस्त करी तब तै लौकिक रस भार भयो ।।


मधुरिम नौने वन बेर लला लेहु खाहु जनम सवांर दयो।


सौमित्र ही शंकर ने भाग्य लिखे , पै भगति विमल को हार नयो।।


 


प्रखर दीक्षित


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