मुक्तक
( सभी मित्रों को सादर समर्पित )
शीर्षक - सफर
*मुक्तक *
(कन्नौजी रस रंग)
जहु जीवन अगम पंथ दुष्कर, पग-पग अड़चन संघर्ष घने।
अनमोल सफर द्वै सांसन को, नित स्वयं सैं प्रियवर युद्ध ठने।।
नाय जानै कबै हा!सांझ ढलै, अपने संगी है श्मसान तलक,
बिरथा अपनी नहिं तानौ प्रखर, प्रभु की बिगरी न बनाए बने।।
अर्कमण्य प्रमाद विषय विष सम , न अकारथ जीवन करौ सखे।
काय बोझ बनौ परमार्थ करौ, थोरे मँह यापन करौ सखे।।
अनमोल जू मानव जीवन सत, देवन कौं दुर्लभ करम योनि,
दया भगति पुरुषार्थ प्रखर, सुमिरन हरि हिय पावन करौ सखे।।
प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद
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