गीतिका
उर्मिला उर मिला खिलखिलाने लगी।
प्यास चौदह बरस की बुझाने लगी।।
उर मिला मन मिला चार आँखें हुई
नव्यता सांझ के गीत गाने लगी।।
आस का दीप जलता रहा हर घड़ी
स्वप्न साजन के मन में सजाने लगी।।
दग्ध मन में विरह ताप आकुल करे
पीर विरहा की तिय को सताने लगी।।
द्वार आए प्रियम् हिय प्र फुल्लित हुआ
पुष्प श्रृद्धा के प्रिया पग में चढाने लगी।।
उमंगित तरंगित युवा चाह मन,
दृष्टि प्रणयी पिया को रिझाने लगी।।
सैन्य पत्नी सा जीवन उर्मिल का था
प्रखर पाजेब पिय को रिझाने लगी।।
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डॉ प्रखर
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