शीर्षक- समय
समय का क्या भागदौड़ का था गुजर गया
सन्नाटे का है गुजर रहा है ।
विनाश का क्या ?
कौरवो का आया था वजह खुद ब खुद बन गई
मनुष्य का आया है वजह स्वयं बना रहा है।
समय के पलट वार का क्या ?
कल तक मनुष्य जीव को मारता था
आज विषाणु मनुष्य को मार रहा है ।
गमंड का क्या ?
कल मनुष्य प्रकृति का नाश कर रहा था
आज प्रकृति करारा जवाब दे रही है ।
स्वेच्छा का क्या?
कल मनुष्य अपने लोभ से दुनिया चला रहा था
आज प्रकृति स्वयं स्वच्छता का श्रृंगार कर रही है ।
ज़ुबाँ बेजुबाँ का क्या?
कल बेजुबाँ हथिनी को मजाग से मारा
कल बेजुबाँ टिड्डी फसलो का मजाग बना देगी ।
समय का क्या?
कल तेरा था तो कल मेरा होगा
कल अँधेरा था तो फिर सवेरा होगा
हिसाब तो होना ही है कल मेरा हुआ
तो आज तेरा होगा ।
समय की मार बड़ी ज़ोरदार
संभल जा मनुष्य ,,,,
वरना विनाश होता रहेगा बरकरार ।
प्रिया चारण
उदयपुर राजस्थान
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