देव घनाक्षरी
डमरू ड़मड्डमड्ड,
बहे गंग जटामध्य,
कण्ठ सर्प मुंडमाल,
ध्यान-मग्न मस्त-मगन।
चन्द्रभाल नेत्र त्रिय,
शांत चित्त भक्त प्रिय,
नीलकण्ठ महाकाल,
वास है कैलाश गगन।
महारौद्र रूप धरे,
मौर बाधे बैल चढे,
अंग में भभूत मले,
करें गण नृत्य नगन।
दैत्य करे डाह आह,
देव करे वाह वाह,
शम्भु-उमा का विवाह,
चढ़ी है लगन लगन।
*राजन सिंह*
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